दरभंगा: बिहार के प्रतिष्ठित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार ने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में सावित्री बाई फुले के प्रयास को असाधारण बताया और कहा कि अपनी निष्ठा और कर्तव्य शीलता के कारण सावित्री बाई फुले देश की पहली दलित महिला शिक्षिका के रूप में चर्चित हुई।
प्रो. कुमार ने विश्वविद्यालय हिंदी विभाग में देश की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले की जयंती पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि जिस दौर में नारी का इतना व्यापक स्तर पर शोषण हो रहा था, उस समय में सावित्री बाई फुले द्वारा स्त्री-शिक्षा के लिए किया जा रहा प्रयास असाधारण था। उन्हें इस कार्य के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने जीवन के अंतिम समय तक समाज की सेवा करती रहीं। अपनी निष्ठा और कर्तव्य शीलता के कारण सावित्री बाई फुले भारत की पहली दलित महिला शिक्षिका के रूप में चर्चित हुई।
“शिक्षा के क्षेत्र में सावित्री बाई फुले प्रेरणा स्त्रोत के रूप में रही” विभाग के वरीय प्राध्यापक डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में सावित्री बाई फुले प्रेरणा स्त्रोत के रूप में रही है। उन्होने कहा कि‘फुले’ने समाज में व्याप्त स्त्री शिक्षा के प्रति उनकी मानसिकता के कारण कई यातनाओं का सामना किया मगर कभी पीछे नहीं हटी। डॉ0 सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि सभ्यता की विकास के साथ ही भारतीय समाज विभिन्न वर्गों और वर्णों में विभक्त हो गया जिसमें ज्ञान और अन्य अधिकार उन लोगों के हाथ लगा जिसका वर्चस्व था। उनके पति ज्योतिबा फुले ने भी दलित उत्थान के लिए काम किया। इन्होंने सामाजिक कुरीतियां, अंधविश्वास, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा के संघर्ष के कारण यातना झेलेनी पड़ी। सावित्री बाई फुले ने अपनी सहेली शेख फातिमा के साथ भी स्त्री शिक्षा के लिए संघर्ष की। इस मौके पर विभाग के कई शोधार्थियों एवं छात्र-छात्राओं ने अपने विचार व्यक्त किए।