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शरद पूर्णिमा : भगवान श्रीकृष्ण ने की थी महारासलीला, इस दिन चंद्रमा से बरसता है अमृत

लखनऊ। शरद ऋतु का विशिष्ट पर्व के रूप में शरद पूर्णिमा का स्थान है। चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट होता है। यह मान्यता है कि, चंद्रमा से इस दिन अमृत बरसता है।

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भक्ति और प्रेम के रस वर्षण का उत्सव

इस पर्व को भक्ति और प्रेम के रस वर्षण का उत्सव माना गया है। इसे कन्हैया की वंशी का प्रेम नाद और जीवात्मा व परमात्मा के रास -रस का आनन्द भी कहा गया है।

पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं महालक्ष्मी

शरद पूर्णिमा महालक्ष्मी का भी पर्व है। मान्यता है कि, धन संपत्ति की अधिष्ठात्री भगवती महा लक्ष्मी शरद पूर्णिमा की रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करती है। इसलिए यह लक्ष्मी पूजा का भी विशेष पर्व है।

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महालक्ष्मी धन के अतिरिक्त यश, उन्नति, सौभाग्य और सुंदरता आदि भी देती है। शरद पूर्णिमा पर चन्द्र रश्मियां न केवल हमारे मन पर, अपितु प्रकृति पर अपना विशेष प्रभाव डालती है।

खुले आकाश के नीचे खीर रखने का विधान

शरद पूर्णिमा की रात्रि खुले आकाश के नीचे दूध और चावल से बनी खीर रखने का विधान है। आयुर्वेद विदों का मानना है कि, इस खीर को खाने से शरीर निरोग, मन प्रसन्न रहता है और आयु की वृद्धि होती है।

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महर्षि वेदव्यास ने चन्द्रमा के 27 नामों वाले चन्द्रमा स्त्रोत्र का परायण का विधान बताया है। प्रत्येक श्लोक का 27 बार उच्चारण किया जाता है।

श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ की थी रासलीला

शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने श्रीधाम वृन्दावन के वंशीतट क्षेत्र स्थित यमुना तट पर असंख्य व्रज गोपिकाओं के साथ दिव्य रासलीला की थी।

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अपनी लोकमोहिनी वंशी बजाकर गोपिकाओं को एकत्रित किया,फिर योगमाया के बल पर शरद पूर्णिमा की रात्रि को 6 मास जितना बड़ा बनाकर ऐसी दिव्य महारास लीला की जिससे हर गोपिका को लग रहा था कि कृष्ण उसके साथ ही रास कर रहे है।

ब्रज गोपी का रूप धारण कर लीला देखने आए थे भगवान शिव

भगवान शिव भी ब्रज गोपी का रूप धारण कर लीला देखने आए थे, तभी से भगवान शिव का एक नाम गोपीश्वर महादेव और भगवान कृष्ण का एक नाम रासेश्वर श्रीकृष्ण पड़ा। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंद के 29 से 33 वे अध्याय तक महारास लीला का विस्तार से वर्णन है।

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तात्विक दृष्टि से भगवान श्रीकृष्ण आत्मा है,आत्मा की वृत्ति राधा है और शेष आत्माभिमुख वृतियां गोपियां है। इन सभी का धाराप्रवाह रूप से निरंतर आत्मरमन ही महारास है।

श्रीकृष्ण के समान ही गोपिकाएं परम् रसमयी थी

भगवान श्रीकृष्ण के समान ही गोपिकाएं भी परम् रसमयी और सच्चिदानंद मयी थी। इसीलिए वह मुरली की सम्मोहक पुकार सुनते ही अपने सभी पारिवारिक दायित्वों को छोड़कर उनके पास चली आई। वस्तुतः उनका त्याग धर्म, अर्थ और काम का त्याग था।

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भगवान श्रीकृष्ण का सानिध्य मोक्षदायक है, इसलिए उन्होंने उसकी प्राप्ति के लिए अन्य पुरुषार्थो को त्याग दिया। यहीं तो उनके विवेक और वैराग्य का सूचक था।

शरद पूर्णिमा पर वृन्दावन में निराली धूम

शरद पूर्णिमा के दिन श्रीधाम वृन्दावन में अद्भुत और निराली धूम रहती है। क्योंकि शरद पूर्णिमा, वृन्दावन और महारास एक दूसरे के पूरक है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

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शरद पूर्णिमा के दिन वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर बांके बिहारी जी महाराज मोर मुकुट, कटि काछनी एवं वंशी धारण करते है।

आज के युग मे तनाव, दुर्भावनाएं व पारस्परिक वैमनस्यता अधिक बढ़ गए है। ऐसे के हम सभी के जीवन मे भक्ति रूपी पुनीत चन्द्रमा के उदित होने की आवश्यकता है,ताकि हम सभी के जीवन में भी सदैव प्रेम का अमृत झरता रहे।

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