रांची। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को CBI की स्पेशल कोर्ट ने डोरंडा ट्रेजरी से 139.5 करोड़ की अवैध निकासी के मामले में दोषी करार दिया है. यह चारा घोटाले से जुड़ा 5वां मुकदमा है, जिसमें अदालत ने उन्हें दोषी माना है. इसके पहले चारा घोटाले के चार मुकदमों में अदालत ने लालू प्रसाद यादव को कुल मिलाकर साढ़े 27 साल की सजा दी है, जबकि एक करोड़ रुपए का जुमार्ना भी उन्हें भरना पड़ा.
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24 अभियुक्तों को साक्ष्य के अभाव में बरी किया
लालू प्रसाद यादव को तुरंत न्यायिक हिरासत में ले लिया गया. उनके अलावा 74 अन्य अभियुक्तों को भी अदालत ने दोषी पाया है, जबकि 24 अभियुक्तों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया. दोषी ठहराए गए अभियुक्तों में पूर्व सांसद जगदीश शर्मा, बिहार की लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष ध्रुव भगत भी शामिल हैं. लालू प्साद यादव की सजा पर 21 फरवरी को सुनवाई होगी.
चारा घोटाले से जुड़ा ये पांचवां मुकदमा
यह चारा घोटाले से जुड़ा पांचवां मुकदमा है, जिसमें अदालत ने उन्हें दोषी माना है. इसके पहले चारा घोटाले के चार मुकदमों में अदालत ने लालू प्रसाद यादव को कुल मिलाकर साढ़े 27 साल की सजा दी है, जबकि एक करोड़ रुपए का जुमार्ना भी उन्हें भरना पड़ा.
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बहुचर्चित चारा घोटाले के इस पांचवें मामले में रांची के डोरंडा थाने में 26 साल पहले 1996 में FIR दर्ज करायी गयी थी. बाद में सीबीआई ने यह केस टेकओवर कर लिया. मुकदमा संख्या आरसी-47 ए/96में शुरूआत में कुल 170 लोग आरोपी थे. इनमें से 55 आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि सात आरोपियों को सीबीआई ने सरकारी गवाह बना लिया. दो आरोपियों ने अदालत का फैसला आने के पहले ही अपना दोष स्वीकार कर लिया. छह आरोपी आज तक फरार हैं.
बचाव पक्ष की तरफ से 25 गवाह पेश किए गए
CBI की स्पेशल कोर्ट में अभियोजन की ओर से कुल 575 लोगों की गवाही कराई गई, जबकि बचाव पक्ष की तरफ से 25 गवाह पेश किए गए. इस मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कुल 15 ट्रंक दस्तावेज अदालत में पेश किए थे.
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पशुपालन विभाग में हुए इस घोटाले में सांढ़, भैस, गाय, बछिया, बकरी और भेड़ आदि पशुओं और उनके लिए चारे की फर्जी तरीके से ट्रांसपोटिर्ंग के नाम पर करोड़ों रुपये की अवैध रूप से निकासी की गयी. जिन गाड़ियों से पशुओं और उनके चारे की ट्रांसपोटिर्ंग का ब्योरा सरकारी दस्तावेज में दर्ज किया था, जांच के दौरान उन्हें फर्जी पाया गया. जिन गाड़ियों से पशुओं को ढोने की बात कही गयी थी, उन गाड़ियों के नंबर स्कूटर, मोपेड, मोटरसाइकिल के निकले.
1990 से 1996 के बीच का है ये मामला
चारा घोटाले के ये मामले 1990 से 1996 के बीच के हैं. बिहार के सीएजी (मुख्य लेखा परीक्षक) ने इसकी जानकारी राज्य सरकार को समय-समय पर भेजी थी लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया. सीबीआई ने अदालत में इस आरोप के पक्ष में दस्तावेज पेश किए कि, मुख्यमंत्री पर रहे लालू यादव ने पूरे मामले की जानकारी रहते हुए भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. कई साल तक वह खुद ही राज्य के वित्त मंत्री भी थे, और उनकी मंजूरी पर ही फर्जी बिलों के आधारराशि की निकासी की गयी.
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चारा घोटाले के चार मामलों में सजा होने के चलते राजद सुप्रीमो को आधा दर्जन से भी ज्यादा बार जेल जाना पड़ा. इन सभी मामलों में उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिली है.