देश विदेश में गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. हर जगह ‘गणपति बप्पा मोरया’ के जयकारे सुनाई दे रहे हैं. वहीं अब कई जगह गणपति बप्पा को विदाई दी जा रही है.
शुभ मुहूर्त के अनुसार लोग बप्पा का विसर्जन कर रहे हैं. वैसे तो 10 दिन तक बप्पा को घर में रखने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति का जल में विसर्जन किया जाता है.
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ढोल नगाड़ों के साथ गणपति बप्पा का विसर्जन
वहीं गणपति विसर्जन के मौके पर ढोल नगाड़ों के साथ लोग गणेश जी के भजन पर जमकर झूमे. और गणपति बप्पा के जयकारे के साथ उन्हें जल में विसर्जित किया.
गणेश विसर्जन की क्या है कहानी ?
गणेश महोत्सव का आखिरी दिन गणेश विसर्जन की परंपरा है. 10 दिवसीय महोत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन के बाद होता है. परंपरा है कि विसर्जन के दिन गणपति की मूर्ति का नदी, समुद्र या जल में विसर्जित करते हैं.
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इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. ऐसा माना जाता है कि, श्री वेद व्यास जी ने गणपति जी को गणेश चतुर्थी के दिन से महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी, उस समय बप्पा उसे लिख रहे थे.
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कहानी सुनाने के दौरान व्यास जी आंख बंद करके गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक कथा सुनाते रहे और गणपति जी लिखते गए. कथा खत्म होने के 10 दिन बाद जब व्यास जी ने आंखे खोली तो देखा कि गणेश जी के शरीर का तापमान काफी ज्यादा बढ़ गया था.
ऐसे में व्यास जी ने गणेश जी के शरीर को ठंडा करने के लिए जल में डुबकी लगवाई. तभी से यह मान्यता है कि 10वें दिन गणेश जी को शीतल करने के लिए उनका विसर्जन जल में किया जाता है.
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यहां से शुरू हुई परंपरा
भारतीय इतिहास में इस परंपरा की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र से की थी. उन्होंने ये अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ एकजुट होने के लिए की थी.
उन्हें ये बात अच्छे से पता थी कि, भारतीय आस्था के नाम पर एकजुट हो सकते हैं. इसलिए उन्होंने महाराष्ट्र में गणेश महोत्सव की शुरुआत की और वहां गणेश विसर्जन भी किया जाने लगा.
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