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केंद्र सरकार जाति जनगणना को दे सकती है मंजूरी !

दिल्ली। केंद्र की सरकार जाति जनगणना को मंजूरी दे सकती है। कोरोना महामारी के कारण अब तक राष्ट्रीय जनगणना प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है, इसलिए सरकार जातीय जनगणना पर हड़बड़ी नहीं दिखा रही। सरकार इस मुद्दे पर फिलहाल ‘देखो और इंतजार करो’ की रणनीति अपना रही है। इस संबंध में मोदी सरकार को रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का भी इंतजार है।

दरअसल जाति जनगणना को लेकर जदयू, अपना दल, आरपीआई जैसे दल लगातार मांग कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सहित राज्य के कई दलों के नेता आज इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मुलाकात करने वाले हैं।

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पीएम मोदी से मिलेंगे सीएम नीतीश

जाति आधारित जनगणना को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रतिनिधिमंडल के साथ सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। मुलाकात 11 बजे होगी। नीतीश ने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा था। खास बात यह है कि इस प्रतिनिधिमंडल में भाजपा, राजद समेत 10 पार्टियों के नेता होंगे

नीतीश के दांव से मची हलचल

जाति जनगणना पर सीएम नीतीश सर्वाधिक मुखर हैं। राज्य विधानसभा ने दो बार जातीय जनगणना के समर्थन में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है। नीतीश ने राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना नहीं होने पर बिहार में अलग से जातीय जनगणना कराने की घोषणा की है। बिहार जातीय रूप से सर्वाधिक संवेदनशील राज्य है।

90 के दशक में मंडल बनाम कमंडल राजनीति में जहां उत्तर प्रदेश में कमंडल की राजनीति मंडल पर हावी हुई थी, वहीं बिहार में लालू प्रसाद यादव अजेय नेता के रूप में उभरे थे। ऐसे में अगर जातीय जनगणना से सरकार ने दूरी बनाई, तो बिहार में भाजपा को सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही कारण है कि नीतीश के दांव से इस मामले में हलचल बढ़ी है।

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केंद्र सरकार जल्दबाजी में नहीं

इस मसले पर केंद्र सरकार में विमर्श का दौर तो शुरू हुआ मगर वह जल्दबाजी में नहीं है। कोरोना के कारण टल रहे जनगणना कार्य का पहला चरण अब अगले साल ही शुरू होने की उम्मीद है। वहीं इसका दूसरा चरण 2023 में शुरू होगा, जिसमें जनगणना, भाषा, साक्षरता, पलायन जैसे विषय शामिल होंगे।


ऐसे में जनगणना का मूल कार्य 2023 से शुरू हो कर 2024 के लोकसभा चुनाव तक चलेगा। इसलिए सरकार जातीय जनगणना के सवाल पर जल्दबाजी दिखाने के मूड में नहीं है।

रिपोर्ट आने पर होगी सियासी हलचल

ओबीसी आरक्षण को संतुलित करने के लिए सरकार ने रोहिणी आयोग गठित की है, जिसकी रिपोर्ट आना बाकी है। आयोग को कई बार विस्तार मिल चुका है। उम्मीद जताई जा रही है आयोग इस साल के अंत तक अपनी रिपोर्ट दे देगा।

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रिपोर्ट आने पर सियासी हलचल तेज होने के आसार हैं। इस समय 2,700 जातियां ओबीसी में शामिल हैं। इनमें से 1700 जातियां अब भी आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। एक अनुमान के मुताबिक ओबीसी में शामिल करीब तीन दर्जन जातियां आरक्षण का 70 फीसदी लाभ हासिल कर रही हैं।

जाति आधारित जनगणना की मांग क्यों? 

जाति आधारित जनगणना के लिए बिहार विधान मंडल और फिर बाद में बिहार विधानसभा में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पहले ही पारित हो चुका है। महाराष्ट्र विधानसभा में भी केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग के प्रस्ताव को हरी झंडी मिल चुकी है। महाराष्ट्र, ओडिशा, बिहार और यूपी में कई राजनीतिक दलों की मांग है कि जाति आधारित जनगणना कराई जाए।

दरअसल जातिगत जनगणना के आधार पर ही सियासी पार्टियों को अपना समीकरण और चुनावी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। सभी पार्टियों की दिलचस्पी अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी की सटीक आबादी जानने को लेकर है। अभी तक सियासी पार्टियां लोकसभा और विधानसभा सीटों पर केवल अनुमानों के आधार पर ही रणनीति बनाती रही है।

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