परमाणु घड़ियों को आकलन के लिहाज से सबसे सटीक माना जाता है। इनमें सेकेंड के अरबवें हिस्से की गणना करने की क्षमता होती है। हर उपग्रह में एक परमाणु घड़ी होती है। अलग-अलग ऑर्बिट में स्थित इन्हीं उपग्रहों में लगी यह परमाणु घड़ी ही पॉजीशनिंग की जानकारी देती है।
भारत अपने समय में कोई बदलाव किए बिना घरेलू कंप्यूटरों और स्मार्टफोन को देसी रूबिडियम परमाणु घड़ी के साथ जोड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। यानी यह घड़ी ही हमारे कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर समय निर्धारित करेगी। इसके साथ ही, भारत ऐसा करने वाले चार अन्य देशों के विशिष्ठ क्लब में शामिल हो जाएगा। वर्तमान में इंटरनेट पर भारतीय सिस्टम अमेरिका स्थित नेटवर्क टाइम प्रोटोकॉल से जुड़े होते हैं। यही पूरे कंप्यूटर नेटवर्क पर समय को निर्धारित करता है।
इस परमाणु घड़ी को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने विकसित किया है। इसका पहली बार इस्तेमाल भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) या नाविक में किया गया था। कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने जब भारत में जीपीएस पहुंच देने से इनकार किया था, उसके बाद रूबिडियम परमाणु घड़ी को बनाया गया था। 2013 से 2023 के बीच लॉन्च नौ नाविक उपग्रह में आयातित परमाणु घड़ी का इस्तेमाल किया गया था। स्वदेश निर्मित इस परमाणु घड़ी का इस्तेमाल पहली बार मई, 2023 में लॉन्च नाविक के 10वें और नवीनतम संस्करण में किया गया था।
सबसे सटीक आकलन
परमाणु घड़ियों को आकलन के लिहाज से सबसे सटीक माना जाता है। इनमें सेकेंड के अरबवें हिस्से की गणना करने की क्षमता होती है। हर उपग्रह में एक परमाणु घड़ी होती है। अलग-अलग ऑर्बिट में स्थित इन्हीं उपग्रहों में लगी यह परमाणु घड़ी ही पॉजीशनिंग की जानकारी देती है। जब तीन से ज्यादा उपग्रहों की परमाणु घड़ी खराब हो जाती है तो फिर रिप्लेसमेंट उपग्रह लॉन्च करना पड़ता है।
नाविक अमेरिकी स्वामित्व वाले जीपीएस का विकल्प…नाविक अमेरिकी स्वामित्व वाले जीपीएस का विकल्प है। सरकार ने इसे विकसित करने के लिए 15 साल पहले मंजूरी दी थी। इसे विकसित करने में 1,420 करोड़ रुपये की लागत आई थी। दूरी की गणना के लिए सटीक होने के कारण नेविगेशनल उपग्रह भी परमाणु घड़ियों का उपयोग करते हैं।