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हरियाणा: चिचड़ी रोग से संक्रमित हो रहीं गाय; इन जिलों में अधिक असर

चिचड़ी रोग हरियाणा के दुधारू पशुओं में आम है। हरियाणा की जीटी बेल्ट और पंजाब से लगती बेल्ट के जिलों में पर्यावरण में नमी अधिक है। इस कारण यहां गायों में यह बीमारी अधिक है। लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा व पशु विज्ञान विश्वविद्यालय हिसार के अधीनस्थ अंबाला शहर में स्थित पशु रोग जांच प्रयोगशाला में अधिकांश इन क्षेत्राें से पशुओं के रक्त के नमूने आते हैं।   

इन नमूनों पर शोध करने के बाद महिला वैज्ञानिक डॉ. वंदना भनोट ने पाया है कि गायों में कई प्रकार के चिचड़ी बुखार पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में थिलेरियोसिस सबसे अधिक मात्रा में है। वहीं शोध में पाया कि गर्मी और बारिश के मौसम में गाय सबसे अधिक संक्रमित होती हैं। चिचड़ी बुखार होने पर कई बार पशुओं की सही जांच के अभाव में वह एनीमिया से ग्रस्त हो जाती हैं और उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता घट जाती है।              

संक्रमित टिक के काटने पर होता है बुखार

डॉ. वंदना बताती हैं कि जिस प्रकार से डेंगू या मलेरिया हर मच्छर के काटने से नहीं फैलता है, इसी प्रकार पशुओं में हर टिक के काटने से चिचड़ी बुखार नहीं फैलता। उन्होंने शोध में पाया कि गायों के चिचड़ी बुखार से संक्रमित होने का सबसे बड़ा कारण वह टिक हैं जो पहले से इस परजीवी से संक्रमित हैं। यह टिक अलग-अलग गायों को काटती है और थिलेरियोसिस को बढ़ावा मिलता है। इसी कारण इसके केस जीटी बेल्ट और पंजाब की सीमा से लगते जिलों में अधिक देखे गए।

इस शोध से क्या होगा फायदा

पहले क्षेत्र में पशु को चिचड़ी बुखार होने पर उसका सीधा उपचार किया जाता था। कई बार अभी भी पशु पालक पशु के रक्त की जांच नहीं कराते हैं। पशु के रक्त की जांच होने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वह किस प्रकार के परजीवी से संक्रमित है। ऐसे में उसी परजीवी का उपचार किया जाए तो पशु बहुत जल्दी ठीक होगा। इस जांच से दवाओं के चयन में भी पशु चिकित्सक को मदद मिलती है। डॉ. वंदना बताती हैं कि पशुपालकों को समय-समय पर चिचड़ी नाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए। गायों में बुखार आने, चारा कम खाने और दूध उत्पादन आदि में कमी होने पर पशुपालक तुरंत उनके खून के नमूनों की जांच लैब में करवाएं ।

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मिला पुरस्कार

लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा व पशु विज्ञान विश्वविद्यालय हिसार में सात व आठ दिसंबर को कुलपति डॉ. विनोद वर्मा के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ था। इसमें डॉ. वंदना भनोट ने चिचड़ी बुखार के विभिन्न प्रकार व थनेरा रोग पर पाेस्टर और शोध पत्र प्रस्तुत किया था। इसके लिए उन्हें सम्मानित किया गया।

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