सारपंगपुर विधानसभा क्षेत्र मालवा से जुड़ा हुआ है इसलिए यहां मालवांचल का खासा असर नजर आता है। इस सीट को राजनीति में भाजपा के गढ़ के रूप में जाना जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यहां भी 1962 से 2018 तक हुए 13 चुनावों कांग्रेस सिर्फ तीन ही बार जीत दर्ज कर सकी है। राजगढ़ जिले की दो ऐसी विधानसभा सीटे हैं, जिनमें से एक कांग्रेस के लिए चुनौती बनी हुई है तो दूसरी भाजपा के लिए। ऐसे में इस बार दोनों ही सीटों पर दोनों दलों के समक्ष मिथक तोड़ने की तैयारी रहेगी। जिले की खिलचीपुर विधानसभा सीट पर अब तक हुए 13 चुनावों में से भाजपा सिर्फ तीन ही बार जीत दर्ज कर सकी है। ठीक इसी प्रकार सारंगपुर विधानसभा सीट ऐसी है जहां अब तक हुए 13 चुनावों में कांग्रेस सिर्फ तीन बार जीत दर्ज कर सकी है। ऐसे में खिलचीपुर भाजपा के लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है, तो सारंगपुर कांग्रेस के लिए चुनौती बनी हुई है। दोनों दलों की इन सीटों पर विशेष नजर है।
खिलचीपुर विधानसभा: 13 चुनाव, सिर्फ 3 बार जीत सकी भाजपा जिले का खिलचीपुर विधानसभा क्षेत्र राजस्थान की सीमा से सटा हुआ है। पश्चिम में इसका अधिकांश भू-भाग राजस्थान से जुड़ा है। इस सीट का अपना एक अलग ही मिजाज है। इस सीट को राजनीति में कांग्रेस के गढ़ के रूप में जाना जाता है।
इसका मुख्य कारण यह है कि यहां 1962 से 2018 तक हुए 13 विधानसभा चुनावों में भाजपा सिर्फ तीन ही बार जीत दर्ज कर सकी, जबकि कांग्रेस ने नौ बार जीत दर्ज की है। एक बार यह सीट निर्दलीय के खाते में भी जा चुकी है। कांग्रेस के इस गढ़ में भाजपा सिर्फ तीन बार 1977, 1990 व 2013 में ही जीत दर्ज कर सकी है। जबकि कांग्रेस यहां 1967, 1972, 1980, 1985, 1993, 1998, 2003, 2008 व 2018 में जीत दर्ज करने में सफल रही है। पहला चुनाव यहां स्वतंत्र रूप से हरिसिं पवार चुनाव जीते थे। ऐसे में यह सीट इस बार भाजपा के लिए फिर से किसी चुनौती से कम नहीं है। भाजपा इस चुनाव में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इस सीट पर लगातार तीसरी बार पुराने चेहरे आमने-सामने हैं। कांग्रेस ने वर्तमान विधायक प्रियव्रतसिंह खींची को पांचवी बार मैदान में उतारा है तो भाजपा ने अपने पुराने जमीनी नेता हजरीलाल दांगी को फिर से मैदान में उतारा है।
सारंगपुर विधानसभा: 13 चुनाव, सिर्फ 3 बार जीत सकी कांग्रेस जिले का सारपंगपुर विधानसभा क्षेत्र मालवा से जुड़ा हुआ है, इसलिए यहां मालवांचल का खासा असर नजर आता है। इस सीट को राजनीति में भाजपा के गढ़ के रूप में जाना जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यहां भी 1962 से 2018 तक हुए 13 चुनावों कांग्रेस सिर्फ तीन ही बार जीत दर्ज कर सकी है, जबकि भाजपा जनता पार्टी व भाजपा यहां 9 बार चुनाव जीतने में सफल रही है। एक बार निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं। भाजपा के इस कढ़ में कांग्रेस सिर्फ तीन बार 1972, 1985 व 1998 में ही जीत दर्ज कर सकी है। जबकि जनता पार्टी यहां 1962, 1967, भाजपा 1980, 1990, 1993, 2003, 2008, 2013 व 2018 में जीत दर्ज करने में सफल रही है। चौथे चुनाव में 1977 में यहां निर्दलीय उम्मीदवार अमरसिंह मोतीलाल ने जीत दर्ज की थी। ऐसे में यह सीट कांग्रेस के लिए इस बार फिर से किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कांग्रेस का इस सीट पर खासा फोकस बना हुआ है।