वाराणसी। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सातवें चरण के चुनाव के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है. वहीं,काग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाराणसी स्थित कबीर चौरा मठ पहुंची . जहां वे अगले 3 दिन तक डेरा कबीर चौरा मठ में ही रहेंगी और वहीं से ही चुनाव प्रचार के लिए निकलेंगी.
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माना जाता है कि, कबीर चौरा मठ में संत कबीर दास ने अपना पूरा जीवन बिताया था. ये मठ कबीरदास की शिक्षाओं, संदेशों एवं स्मृतियों का केंद्र है। देशभर के कबीरपंथियों और कबीरदास जी को मानने वाले लोगों के लिए कबीर चौरा मठ एक मुख्य आकर्षण का केंद्र है. साल 1934 में महात्मा गांधी का भी इस मठ में आगमन हुआ था.
दरअसल, माना जा रहा है कि, कहा वाराणसी में कबीर चौरा मठ को अपना ठिकाना बनाकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने एक बहुत बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है संत कबीर दास जी के सामाजिक न्याय एवं समानता के संदेश से यूपी का दलित एवं अति पिछड़ा वर्ग बहुत जुड़ाव रखता है. जहां यूपी के सांतवें फ़ेज में चुनाव होना (पूर्वांचल) है, उन जगहों पर अति पिछड़ी जातियों एवं दलितों की संख्या अच्छी-ख़ासी है. साथ ही संत कबीरदास जी का सांस्कृतिक महत्व भी बहुत है.
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ऐसे में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने दलित व अति पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए लगातार आवाज उठाई है. उन्होंने अपने घोषणा पत्र में भी दलित व अति पिछड़े वर्ग के लिए काफ़ी दूरगामी परिणामों वाली घोषणाएँ की हैं. कबीर चौरा मठ का ठिकाना प्रियंका के संघर्षों और सामाजिक न्याय को मज़बूत करने के उनके प्रयासों को लेकर एक बड़ा संदेश देगा.
कबीर चौरा मठ मशहूर हस्तियों एवं पद्म पुरस्कार विजेताओं के हैं घर
बता दें कि वाराणसी के राजनीतिक पंडितों का मानना है कि प्रियंका गांधी ने कबीर चौरा मठ के ज़रिए सांस्कृतिक जगत को भी एक बड़ा संदेश दिया है. चूंकि कबीर चौरा मठ के आस-पास गलियों में भारतीय कला जगत की मशहूर हस्तियों एवं पद्म पुरस्कार विजेताओं के घर हैं. ये लोग भारत की कला जगत के स्तंभ हैं. ऐसे में लोग क़यास लगा रहे हैं कि प्रियंका के इस मोहल्ले में प्रवास से भारतीय कला जगत के ज़रिए पूरे वाराणसी में एक अच्छा संदेश जाएगा.
सांस्कृतिक रूप से काफी महत्व रखता हैं मठ
गौरतलब है कि इस मठ में साल 1934 में महात्मा गांधी आ चुके हैं. इसके अलावा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रकवि रविंद्रनाथ टैगोर भी यहां आकर रुका करते थे. ऐसे में अभी सातवें चरण में सात मार्च को वोट पड़ना है. इन चरण में अति पिछड़ी जातियों व दलितों की संख्या काफी ठीकठाक है.