श्रीहरिकोटा। इसरो ने आज सुबह 5.43 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी F -10 (मार्क 2) के जरिए अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट का दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपण किया.
तकनीकी दिक्कतों के कारण सैटेलाइट ट्रेजेकटरी से अलग हुआ इंजन
जीएसएलवी यानी जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, जो अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS -03) को अंतरिक्ष के जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित करने वाला था. लेकिन तीसरे स्टेज सेपरेशन के दौरान क्रायोजेनिक इंजन में कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण सैटेलाइट ट्रेजेकटरी से अलग हो गया.
18 मिनट 36 सेकेंड ने पूरा होना था मिशन
सैटेलाइट को जियो स्टेशनरी ऑर्बिट में स्थापित करना था. इस लॉन्च के लिए उल्टी गिनती बुधवार सुबह 03.43 को शुरू हो गई थी. पूरा मिशन 18 मिनट 36 सेकेंड ने पूरा होना था, लेकिन मिशन के लॉन्चिंग के 10 मिनट के भीतर ही मिशन कंट्रोल रूम तनावपूर्ण माहौल देखा गया.
इसरो चीफ ने बताया- नहीं पूरा हो पाया मिशन
जिससे ये लगने लगा कि, मिशन के तीसरे भाग में कुछ तकनीकी खराबी देखी गई है. कुछ मिनटों में इसरो चीफ के सीवन ने देश को बताया कि, मिशन पूरा नहीं हो सका, क्योंकि क्रायोजेनिक इंजन के परफॉर्मेंस में एनोमली ऑब्जर्व की गई है.
यानी ऐसी कोई तकनीकी दिक्कत जिसके चलते डाटा इसरो तक नहीं आ पा रहा था और अपने पथ से अलग हो गया.
जीएसएलवी लॉन्च का ये 14वां मिशन था
बता दें कि, आज का मिशन जीएसएलवी लॉन्च का 14वां मिशन था. अब तक 8 पूरी तरह सफल रहे हैं जबकि 4 असफल और 2 आंशिक रूप से सफल रहें हैं. यहीं कारण है कि जीएसएलवी मार्क 1 का सफलता दर 29% जबकि जीएसएलवी मार्क 2 का 86% है.
GiSat – 1 का लॉन्च पिछले साल से टलता आ रहा
दरअसल, इस सैटेलाइट का नाम GiSAT- 1 है. लेकिन इसका कोड नेम EOS-03 दिया गया. GiSat – 1 का लॉन्च पिछले साल से टलता आ रहा था. इस साल भी 28 मार्च को इसका लॉन्च तय हुआ था. लेकिन टेक्निकल गड़बड़ी की वजह से लॉन्च टाला गया.
जमीन की हर गतिविधि पर नजर रखने में कामयाब होता ये मिशन
इसके बाद अप्रैल और मई में भी लॉन्च डेट्स तय हुई थीं. उस समय कोविड-19 संबंधित प्रतिबंधों की वजह से लॉन्चिंग नहीं हो सकी. इसके जरिए भारत दुश्मन की जमीन पर होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखने में और ज्यादा कामयाब होता.
जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में अब भारत के दो उपग्रह है
दरअसल, जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में अब भारत के दो उपग्रह इनसैट 3D और इनसैट 3DR है. जिसके बाद आसमान से हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकती थी.
इसे स्पाई सैटेलाइट या आई इन द स्काई कहा गया
खास कर चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर भी नजर रखने में यह सैटेलाइट मिलिट्री इंटेलिजेंस के लिए काफी कारगर साबित होता. यहीं कारण है कि, इसे स्पाई सैटेलाइट या आई इन द स्काई कहा गया.
फॉरेस्ट के लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग करने में सक्षम था
सेना की मदद के अलावा यह सैटेलाइट कृषि, जंगल, मिनरेलॉजी, आपदा से पहले सूचना देना, क्लाउड प्रॉपर्टीज, बर्फ, ग्लेशियर समेत समुद्र की निगरानी करना या किसी भी तरह के फॉरेस्ट के लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग करने में सक्षम था.