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क्या आप भी PCOD और PCOS को समझते हैं एक, जानें क्या है दोनों में अंतर

तेजी से बदलती लाइफस्टाइल इन दिनों लोगों को कई समस्याओं का शिकार बना रही है। खासकर महिलाएं अकसर कई स्वास्थ्य समस्याओं की चपेट में आ जाती हैं। काम का प्रेशर और घर-परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से वह अपनी सेहत को नजरअंदाज कर देती हैं, जिसकी वजह से कई बीमारियां उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं। पीसीओएस (PCOS) और पीसीओडी (PCOD) ऐसी ही दो समस्याएं, जो दुनियाभर में महिलाओं में होने वाली सबसे प्रचलित बीमारियां हैं।

हालांकि, ज्यादातर लोगों को इन दोनों समस्याओं के बीच अंतर नहीं पता, जिसकी वजह से वह इसे एक ही समझ लेते हैं, लेकिन दोनों ही समस्याएं एक-दूसरे से काफी अलग हैं। ऐसे में इन दोनों बीमारियों के बीच अंतर जानने के लिए हमने गुरुग्राम स्थित सीके बिड़ला हॉस्पिटल में प्रसूति एवं स्त्री रोग की प्रमुख सलाहकार डॉ. आस्था दयाल से बातचीत की।

डॉक्टर बताती हैं कि पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम यानी पीसीओएस और पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर या पीसीओडी, यूं तो कई मायने में एक जैसी हो सकती हैं, लेकिन इन दोनों में ध्यान देने योग्य अंतर भी हैं, जो निम्न हैं-

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)
यह एक हार्मोनल स्थिति, जो गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करती है। इसके लक्षण कई प्रकार के होते हैं, जैसे पॉलीसिस्टिक ओवरीज (कई छोटे सिस्ट वाली ओवरीज), अनियमित मासिक धर्म और एण्ड्रोजन (मेल हार्मोन) का हाई लेवल।

पीसीओएस रिप्रोडक्टिव संबंधी कठिनाइयों के अलावा इंसुलिन रेजिस्टेंस, मोटापा, डायबिटीज और दिल से जुड़ी समस्याओं का कारण बन सकती है। इसके निदान के लिए आमतौर पर तीन मानदंड मौजूद होते हैं:- अल्ट्रासोनोग्राफी पर पॉलीसिस्टिक ओवरीज, हाई एण्ड्रोजन लेवल और अनियमित पीरियड्स।

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर (पीसीओडी)
हालांकि, पीसीओडी और पीसीओएस को कभी-कभी एक दूसरे की जगह इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन पीसीओडी विशेष रूप से कई सारे ओवरीज सिस्ट की वजह बन सकता है। इसमें पीसीओएस से जुड़े अन्य लक्षण नजर नहीं आते हैं। अनियमित पीरियड्स और ओवरीज सिस्ट पीसीओडी की सामान्य विशेषताएं हैं, लेकिन पीसीओएस से जुड़ी हार्मोनल गड़बड़ी और मेटाबॉलिज्म संबंधी समस्याएं इसमें हमेशा मौजूद नहीं होती हैं।

पीसीओएस और पीसीओडी से ऐसे करें बचाव
स्वस्थ वजन रखें
अगर कोई व्यक्ति मोटा या ज्यादा वजन वाला है, तो पीसीओएस और पीसीओडी के लक्षण खराब हो सकते हैं। ऐसे में संतुलित आहार के साथ नियमित व्यायाम वजन को नियंत्रित करने और इस समस्या कम करने में मदद कर सकता है।

हेल्दी डाइट
संतुलित और हेल्दी डाइट की मदद से इन समस्याओं का बचा जा सकता है। ऐसे में साबुत अनाज, फल, सब्जियों, लीन मीट और हेल्दी फैट से भरपूर डाइट फॉलो करना फायदेमंद होगा। साथ ही प्रोसेस्ड, शुगर और हाई फैट वाले फूड्स को कम मात्रा में खाएं।

एक्सरसाइज जरूर करें
शारीरिक गतिविधि को अपने शेड्यूल का नियमित हिस्सा बनाएं। हफ्ते में कम से कम 150 मिनट मीडियम या हैवी एक्सरसाइज करने का प्रयास करें।

स्ट्रेस मैनेज करें
अत्यधिक तनाव इन समस्याओं के लक्षणों को बदतर बना सकता है। ऐसे में अपने रोजमर्रा के दिनचर्या में स्ट्रेस के मैनेज करने के लिए योग, मेडिटेशन, डीप ब्रीथिंग एक्सरसाइज आदि को शामिल कर सकते हैं।

नियमित मेडिकल चेकअप
नियमित रूप से अपने डॉक्टर से मिलने से आपको पीसीओएस या पीसीओडी से संबंधित इंसुलिन रेजिस्टेंट, हाई ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल के स्तर जैसी किसी भी स्वास्थ्य समस्या को मैनेज करने में मदद मिल सकती है और इससे आपको अपने स्वास्थ्य की निगरानी करने में भी मदद मिल सकती है।

दवाएं
कुछ परिस्थितियों में इंसुलिन रेजिस्टेंट को कंट्रोल करने, टेस्टोस्टेरोन के स्तर को कम करने या मेंस्ट्रूअल साइकिल को रेगुलर करने के लिए दवा की सलाह दी जा सकती है। ये एंटी-एंड्रोजन दवाएं, मेटफॉर्मिन (इंसुलिन रेजिस्टेंस के लिए) या बर्थ कंट्रोल पिल्स हो सकती हैं।

फर्टिलिटी ट्रीटमेंट
ओव्यूलेशन को गति देने में मदद करने के लिए, उन महिलाओं को फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की सलाह दी जा सकती है, जो गर्भधारण का करने का प्रयास कर रही हैं।

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