नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के राष्ट्रीय अध्यक्ष के अनुसार, दोनों ही राज्यों में पचास से ज्यादा सीटों को इधर-उधर करने में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा, अहम भूमिका निभाएगा।
‘पुरानी पेंशन’ बहाली के मुद्दे पर केंद्र और विभिन्न प्रदेशों के कर्मचारी संगठन अब लामबंद हो चुके हैं। ओपीएस की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में तीन रैलियां आयोजित की गई हैं। चौथी रैली दस दिसंबर को होगी। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु कहते हैं, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले होंगे। खासतौर पर, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में सरकारी कर्मियों का वोट, सत्ता समीकरण बिगाड़ने के लिए काफी है। तीनों ही राज्यों में एनएमओपीएस के बैनर तले ‘वोट फॉर ओपीएस’ कैंपेन और मतदाता जागरूकता अभियान शुरु किया गया है। अगर सरकारी कर्मियों और उनके परिवार को मिलाएं तो हर विधानसभा क्षेत्र में ‘25000’ वोट टर्निंग प्वाइंट बनने जा रहे हैं।
केवल संख्या देख रहे, फैक्टर नहीं
विजय कुमार बंधु ने शनिवार को बताया, राजस्थान और मध्यप्रदेश, इन दोनों प्रदेशों में अगर यूं कहें कि पुरानी पेंशन का मुद्दा एक टर्निंग प्वाइंट बन चुका तो कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी। जो लोग ऐसा सोचते हैं कि सरकारी कर्मियों की संख्या तो कम है। ऐसे लोगों के लिए इतना ही कहा सकता है कि वे केवल संख्या को देख रहे हैं, उसके पीछे जो फैक्टर है, वे उसे नजरअंदाज कर रहे हैं। जब वोट गिरेंगे तो यही फैक्टर निर्णायक बन जाएगा। अगर किसी गांव में दो टीचर हैं और वे अपना मुद्दा रखने में सक्षम हैं तो पूरा गांव, उनकी मांग यानी ‘ओपीएस’ पर विचार कर सकता है। राजस्थान और मध्यप्रदेश के किसी भी विधानसभा क्षेत्र को ले लें, वहां पर कम से कम पांच हजार सरकारी कर्मियों की संख्या है। कुछ रिटायर्ड कर्मी भी हैं। अगर हम केवल सर्विंग कर्मियों की बात करें तो उनके परिवार को मिलाकर वह औसत संख्या 25 हजार हो जाती है। विधानसभा चुनाव, जहां कांटे की टक्कर होती है, वहां पर पांच सौ वोट भी जीत हार तय करने के लिए काफी होते हैं। यहां तो बात पच्चीस हजार वोटों की हो रही है।
इन दो राज्यों में ‘ओपीएस’ का असर देख चुके हैं
नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के राष्ट्रीय अध्यक्ष के अनुसार, दोनों ही राज्यों में पचास से ज्यादा सीटों को इधर-उधर करने में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा, अहम भूमिका निभाएगा। दोनों ही राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों का कोर वोटर भी अब ‘ओपीएस’ की बात कर रहा है। ‘नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम’ द्वारा शुरु किए गए जागरूकता अभियान का जबरदस्त असर देखने को मिल रहा है। सरकारी कर्मचारी, अपने बुढ़ापे को सुरक्षित करने के लिए वोट करेंगे। राजनीतिक दल, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में ‘ओपीएस’ का असर देख चुके हैं। मध्यप्रदेश की बात करें तो वहां पर लगभग छह लाख ऐसे कर्मचारी हैं, जो एनपीएस में हैं। अगर रिटायर्ड कर्मियों की बात करें तो उनकी संख्या भी तकरीबन छह लाख है। भले ही रिटायर्ड कर्मी, ‘ओपीएस’ में हैं, लेकिन वे भी एनपीएस कर्मियों का साथ दे रहे हैं। रेलवे और दूसरे केंद्रीय महकमों के कर्मियों व उनके परिजनों को मिलाकर यह संख्या डेढ़ दो लाख हो जाती है। वोटिंग के दौरान यह संख्या अपना असर दिखाएगी। इसी तरह अगर राजस्थान की बात करें तो यहां पर भी नौ से दस लाख सर्विंग/रिटायर्ड कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्य हैं। चुनाव में सत्ता के समीकरण को बनाने और बिगाड़ने के लिए यह संख्या काफी है।
पेंशन न एक इनाम है न ही अनुग्रह की बात
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बीडी चंद्रचूड, जस्टिस बीडी तुलजापुरकर, जस्टिस ओ. चिन्नप्पा रेड्डी एवं जस्टिस बहारुल इस्लाम शामिल थे, के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट पिटीशन संख्या 5939 से 5941, जिसको डीएस नाकरा एवं अन्य बनाम भारत गणराज्य के नाम से जाना जाता है, में दिनांक 17 दिसंबर 1981 को दिए गए प्रसिद्ध निर्णय का उल्लेख करना आवश्यक है। इसके पैरा 31 में कहा गया है, चर्चा से तीन बातें सामने आती हैं। एक, पेंशन न तो एक इनाम है और न ही अनुग्रह की बात है जो कि नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर हो। यह 1972 के नियमों के अधीन, एक निहित अधिकार है जो प्रकृति में वैधानिक है, क्योंकि उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के खंड ’50’ का प्रयोग करते हुए अधिनियमित किया गया है। पेंशन, अनुग्रह राशि का भुगतान नहीं है, बल्कि यह पूर्व सेवा के लिए भुगतान है। यह उन लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक न्याय प्रदान करने वाला एक सामाजिक कल्याणकारी उपाय है, जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे दिनों में, नियोक्ता के इस आश्वासन पर लगातार कड़ी मेहनत की है कि उनके बुढ़ापे में उन्हें ठोकरें खाने के लिए नहीं छोड़ दिया जाएगा।
एनपीएस में रिटायर्ड कर्मियों को मिली इतनी पेंशन
एनपीएस में कर्मियों जो पेंशन मिल रही है, उतनी तो बुढ़ावा पेंशन ही है। एनपीएस स्कीम में शामिल कर्मी, 18 साल बाद रिटायर हो रहे हैं, उन्हें क्या मिला है। एक कर्मी को एनपीएस में 2417 रुपये मासिक पेंशन मिली है, दूसरे को 2506 रुपये और तीसरे कर्मी को 49 सौ रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिली है। अगर यही कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में होते तो उन्हें प्रतिमाह क्रमश: 15250 रुपये, 17150 रुपये और 28450 रुपये मिलते। एनपीएस में कर्मियों द्वारा हर माह अपने वेतन का दस प्रतिशत शेयर डालने के बाद भी उन्हें रिटायरमेंट पर मामूली सी पेंशन मिलती है। इस शेयर को 14 या 24 प्रतिशत तक बढ़ाने का कोई फायदा नहीं होगा। एआईडीईएफ के महासचिव सी.श्रीकुमार के मुताबिक, एनपीएस में पुरानी पेंशन व्यवस्था की तरह महंगाई राहत का भी कोई प्रावधान नहीं है। जो कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में आते हैं, उन्हें महंगाई राहत के तौर पर आर्थिक फायदा मिलता है। एनपीएस में सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी नहीं रही।
20 और 21 नवंबर को देशभर में स्ट्राइक बैलेट
केंद्र एवं राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठन, ‘पुरानी पेंशन’ पर निर्णायक लड़ाई की तरफ बढ़ रहे हैं। अगर केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली नहीं की तो ट्रेनें थम जाएंगी, टैंक/हथियार बनाने वाली मशीन बंद होंगी और सरकारी कर्मचारी कलम छोड़ देंगे। केंद्र और राज्यों के कर्मचारी अब कुछ ऐसे ही कठोर कदमों पर चलने की रणनीति बना रहे हैं। हालांकि ऐसे कठोर कदमों की सटीक जानकारी 21 नवंबर के बाद ही मिल सकेगी। ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के वरिष्ठ सदस्य और एआईडीईएफ के महासचिव सी.श्रीकुमार ने बताया, सरकार इस मामले पर अड़ियल रवैया अख्तियार कर रही है। पुरानी पेंशन के लिए कर्मचारी संगठन, राष्ट्रव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल कर सकते हैं। इसके लिए 20 और 21 नवंबर को देशभर में स्ट्राइक बैलेट होगा। कर्मचारियों की राय ली जाएगी। अगर दो तिहायी बहुमत हड़ताल के पक्ष में होता है तो केंद्र एवं राज्यों में सरकारी कर्मचारी, अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। उस अवस्था में रेल थम जाएंगी, आयुद्ध कारखाने, जो अब निगमों में तबदील हो चुके हैं, वहां पर काम बंद हो जाएगा। केंद्र एवं राज्यों के सरकारी कर्मचारी ‘कलम’ छोड़ देंगे।