लिविंग विल को लागू करने वाला गोवा देश का पहला राज्य बन गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एम एस सोनक ने एक कार्यक्रम के दौरान ‘जीवन के अंत में देखभाल की वसीयत’ जिसे लिविंग विल भी कहा जाता है, उसे लागू करने की मंजूरी दे दी। इसके साथ ही जस्टिस एम एस सोनक लिविंग विल को लागू करने वाले पहले जज बन गए हैं।
क्या है लिविंग विल
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मार्च 2018 को इज्जत के साथ मरने के अधिकार को मूलभूत अधिकार का दर्जा दिया था। जिसके बाद राज्यों में लिविंग विल को लागू करने का रास्ता साफ हो गया था। दरअसल लिविंग विल एक दस्तावेज है, जिसमें कोई व्यक्ति यह बताता है कि वह भविष्य में गंभीर बीमारी की हालत में किस तरह का इलाज कराना चाहता है। अगर गंभीर बीमारी में कोई व्यक्ति फैसले लेने की स्थिति में न रहे तो पहले से तैयार लिविंग विल की मदद से मरीज के इलाज के बारे में फैसला लिया जाता है।
आईएमए और लीगल सर्विस अथॉरिटी ने किया कार्यक्रम का आयोजन
गोवा हाईकोर्ट परिसर में हुए कार्यक्रम में डॉ. संदेश चोडंकर और दिनेश शेट्टी बतौर गवाह पेश रहे। गोवा की डायेक्टोरेट ऑफ सर्विस की चीफ मेडिकल अफसर डॉ. मेधा सालकर राजपत्रित अधिकारी के तौर पर कार्यक्रम में शामिल हुईं। इस दौरान जस्टिस सोनाक ने राज्य में लिविंग विल को लागू करने के लिए सभी हितधारकों को बधाई दी। जस्टिस सोनक ने लोगों से अपील की कि वे लिविंग विल की अहमियत को समझें और सोच-समझकर फैसले लें। इस कार्यक्रम का आयोजन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की गोवा शाखा और गोवा स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा किया गया था।