Supreme Court Order in Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट में आज बुलडोजर एक्शन से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई हुई। सुनवाई जस्टिस गवई की बेंच ने की। उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश और राजस्थान की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश कीं। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि किसी प्रॉपर्टी पर बुलडोजर की कर्रवाई के पहले नोटिस देने की व्यवस्था है। अब तक नोटिस चिपकाया जाता है, लेकिन नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाना चाहिए। नोटिस मिलने के 10 दिन बाद ही विवादित संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच का फैसला
सॉलिसिटर जनरल की इस सलाह के जवाब में जस्टिस गवई ने कहा कि हम एक सेक्युलर देश में रहते हैं। अतिक्रमण वाली जमीप पर प्रॉपर्टी किसी की भी हो सकती है। वह हिंदू की भी हो सकती है, मुस्लिम की भी हो सकती है। सार्वजनिक सड़कों पर, वॉटर बॉडी या रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके मंदिर, मस्जिद या दरगाह जो कुछ भी बनाया गया है, उसे तो जाना ही होगा, क्योंकि पब्लिक ऑर्डर सर्वोपरि है।
जस्टिस ने कहा कि साल में 4 से 5 लाख बुलडोजर एक्शन होते हैं। पिछले कुछ सालों का यही आंकड़ा है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इनमें से मात्र 2% के बारे में हम अखबारों में पढ़ते हैं और यह वे मामले होते हैं, जिनको लेकर विवाद होता है। इस दलील पर जस्टिस गवई ने मुस्कुराते हुए कहा कि बुलडोजर जस्टिस! हम निचली अदालतों को निर्देश देंगे कि अवैध निर्माण के मामले में आदेश पारित करते समय सावधानी बरतें।