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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को संविधान के खिलाफ करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना का अधिकार योजना का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने का एलान किया है। कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए इस स्कीम को असंवैधानिक करार दे दिया। इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से भी चुनावी बॉन्ड से जुड़ी अहम जानकारी मांगी है। आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें…

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक, क्या दिए निर्देश

1. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को संविधान के खिलाफ करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना का अधिकार योजना का उल्लंघन है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

2. सर्वोच्च न्यायालय ने बैंकों को निर्देश देते हुए कहा कि वह अब चुनावी बॉन्ड को जारी करना बंद कर दें। इसी के साथ इन्हें जारी करने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से चुनावी बॉन्ड के जरिए दी गई दान राशि की जानकारी भी मांगी है।

3. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने किस राजनीतिक दल को कितना चंदा मिला, इससे जुड़ी डिटेल्स भी देने का निर्देश दिया है। इसके अलावा कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 18 अप्रैल 2019 से अब तक जारी हुए सभी किस्त के चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर मुहैया कराए।

4. सभी राजनीतिक चंदे सरकारी नीतियों को बदलने के लिए नहीं किए जाते। कई बार छात्र, दिहाड़ी कमाने वाले भी इस में योगदान देते हैं। कुछ राजनीतिक योगदानों को सिर्फ इसलिए निजता के दायरे में न लेना, क्योंकि वह दूसरे मकसदों से किए गए हैं, यह अस्वीकार्य है।

5. कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के योगदान के मुकाबले किसी कंपनी के चंदे का राजनीतिक प्रक्रिया में काफी गंभीर प्रभाव होता है। कंपनियों द्वारा इस तरह के योगदान पूर्णतः व्यापारिक लेनदेन हैं। ऐसे में किसी व्यक्ति और कंपनियों के चंदे को एक जैसा मापने के लिए कंपनीज एक्ट की धारा 182 में संशोधन स्पष्ट तौर पर मनमाना है।

6. गौरतलब है कि चुनावी बॉन्ड योजना को सरकार ने 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के मकसद से राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। हालांकि, इसे लेकर विपक्षी दलों ने कई बार शिकायतें उठाईं।

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