वैश्विक जलवायु सम्मेलन में गुजरात की दो महिलाओं ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के पारंपरिक समाधान पेश किए। देसी परिधान पहनकर संगीताबेन राठौड़ और जसुमतिबेन जेठाबाई परमार ने शक्तिशाली पारंपरिक समाधानों के साथ जलवायु सम्मेलन में दमदार मौजूदगी दर्ज कराई।
रासायनिक खाद का एक सतत विकल्प मिला
इससे पहले कभी अपने गृह राज्य गुजरात से बाहर नहीं निकलीं अरावली की राठौड़ और जेतापुर की परमार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए व्यावहारिक समाधान पेश किए जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर धूम मचा रहे हैं। अपने पारंपरिक ज्ञान के बलबूते वे नीम की पत्तियों और गौमूत्र का इस्तेमाल कर जैविक खाद एवं कीटनाशक बना रही हैं, जिसने न केवल वर्षों तक उनकी फसलों को बचाकर रखा है बल्कि पूरे भारत में महिला किसान इसे अपना रही हैं। इससे रासायनिक खाद का एक सतत विकल्प मिला है।
पारंपरिक समाधानों के जरिए जलवायु परिवर्तन से निपटा जा सकता है
राठौड़ ने कहा कि मैंने जलवायु परिवर्तन के कारण भारी नुकसान झेलने के बाद स्थानीय समाधान की तलाश करने की ठानी। मुझे 2019 में 1.5 लाख रुपये से अधिक की गेहूं की फसल का नुकसान हुआ। उसके बाद हमने समस्या पर गौर करना शुरू किया और हमें पता चला कि बदलती जलवायु के कारण कीटों का हमला काफी ज्यादा बढ़ गया है और रासायनिक कीटनाशकों का असर नहीं हो रहा है। इसके बाद हमने पारंपरिक समाधानों का रुख करने की सोची जिसका हमारे पूर्वज इस्तेमाल करते थे, जिसमें नीम की पत्तियां और गौमूत्र शामिल है।
संगीताबेन और जसुमतिबेन ने अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ भी अपने विचार साझा किए और जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय महिला कामगारों के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। स्वाश्रयी महिला सेवा संघ (सेवा) की निदेशक रीमा नानावती ने भी जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय महिला कामगारों के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख किया। वैश्विक जलवायु वार्ता में 198 देशों के 1,00,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया।
भारत में पिछले साल कार्बन उत्सर्जन औसत से आधा रहा
भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन डाइडाक्साइड उत्सर्जन 2022 में लगभग पांच प्रतिशत बढ़कर दो टन तक पहुंच गया, लेकिन यह अब भी वैश्विक औसत से आधे से कम है। मंगलवार को यहां जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के अनुसार अमेरिका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के मामले में पहले स्थान पर रहा, जहां हर व्यक्ति ने 14.9 टन कार्बन डाइआक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन किया। इसके बाद रूस 11.4 टन, जापान 8.5 टन, चीन 8 टन और यूरोपीय संघ (ईयू) में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 6.2 टन रहा। वैश्विक औसत 4.7 टन है।
भारत 2011 से 2020 तक बाढ़ और सूखे की चपेट में रहा
डब्ल्यूएमओजलवायु सम्मेलन में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की बिगड़ती स्थिति के चलते भारत के लिए 2011-2020 का दशक बाढ़ और सूखे की चपेट में रहा। रिपोर्ट में कहा गया कि 2023 रिकॉर्ड में सबसे गर्म वर्ष होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, दशक 2011-2020 के दौरान सूखे का काफी अधिक सामाजिक-आर्थिक और मानवीय प्रभाव पड़ा। स्वयं भारत में, 28 राज्यों में से 11 में सूखा घोषित किया गया, जिससे खाद्य और जल असुरक्षा पैदा हो गई। इस दौरान भारत में सर्वाधिक भीषण बाढ़ आने का घटनाक्रम भी हुआ और भारी बारिश, पर्वतीय बर्फ के पिघलने तथा हिमनद झील के फटने से उत्तराखंड में अत्यधिक बाढ़ और भूस्खलन में 5,800 से अधिक लोग मारे गए।