पंजाब में पराली का प्रबंधन सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। राज्य में लगातार प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। पराली सीजन के दौरान एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 के स्तर को छूने लगा है। इस बार भी बठिंडा और मंडी गोबिंदगढ़ जैसे शहरों का एक्यूआई लगातार 350 से ऊपर रहा। पराली जलाने के मामलों में भले ही बीते सालों के मुकाबले कमी आ रही है, लेकिन इसकी रफ्तार काफी धीमी है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन आदर्श पाल विग का कहना है कि साल 2022 की तुलना में इस बार करीब 30 फीसदी पराली कम जली है। हालांकि, लक्ष्य 50 फीसदी का था। उम्मीद है कि आने वाले समय में पराली जलाने के मामले और कम होंगे।
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पराली जलाने के चलन पर पूरी तरह से काबू पाकर ही समस्या का हल किया जा सकता है। इस बार भी पराली जलाने की 36663 घटनाएं दर्ज की गईं। किसानों को पराली प्रबंधन के लिए मशीनें मुहैया कराई गईं थीं। इसके बावजूद घटनाओं में उतनी कमी नहीं आ सकी, जितनी उम्मीद थी। हर वर्ष उत्तर भारत में अक्तूबर व नवंबर के महीनों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इसकी सारी तोहमत पंजाब पर लगती है। हरियाणा जहां प्रदूषण के लिए पंजाब को जिम्मेदार ठहराता है, वहीं पंजाब इसके लिए दिल्ली में वाहनों की अधिक संख्या को जिम्मेदार ठहराता है।
साल 2018 की बात करें, तो 10 नवंबर को अमृतसर का एक्यूआई 116, बठिंडा का 123, जालंधर का 124, खन्ना का 211, मंडी गोबिंदगढ़ का 191, पटियाला का 174 दर्ज किया गया था। 10 नवंबर 2023 पर रहे एक्यूआई को देखा जाए, तो अमृतसर का 212, बठिंडा का 383 (बेहद खराब), मंडी गोबिंदगढ़ का 305, पटियाला का 306, जालंधर का 221 और खन्ना का 256 दर्ज किया गया था। 15 सितंबर से लेकर 30 नवंबर तक सेटेलाइट के जरिये पराली जलने के मामलों की मॉनीटरिंग की जाती है। ज्यादा खराब स्थिति मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर तक रहती है। इस दौरान एक्यूआई का स्तर काफी बढ़ा रहता है। यह समस्या हर बीतते साल के बढ़ती जा रही है।
प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से दो बार लगी फटकार
पंजाब में साल 2016 में पराली जलाने के 81042 मामले रिपोर्ट हुए, जबकि 2017 में 45384 और 2018 में इसकी संख्या 50590 रही। इसी तरह से साल 2019 में पराली जलाने के 55210 मामले, 2020 में 76590 मामले, 2021 में 71304 मामले, 2022 में 49922 मामले और मौजूदा सीजन में साल 2023 में 36663 मामले रिपोर्ट किए गए। चिंताजनक बात यह है कि पराली जलाने के भले ही सरकारों के प्रयासों के चलते कम हो रहे हैं, परंतु एक्यूआई स्तर का बढ़ता स्तर खतरे की घंटी है। इस बार पंजाब सरकार को प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से दो बार फटकार पड़ी। लगातार पंजाब पराली जलाने के मसले को लेकर केंद्र व दिल्ली सरकारों के निशाने पर भी बना रहता है।
किसान मांग रहे प्रति एकड़ पांच हजार
भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी के नेता रणजीत सिंह सवाजपुर के मुताबिक किसानों को धक्के के साथ पराली जलाने से रोका नहीं जा सकता है। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए किसानों को पराली प्रबंधन के लिए प्रति एकड़ 3000 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाए।
1.17 लाख मशीनें मौजूद, फिर भी रिजल्ट में सुधार नहीं
साल 2023 के दौरान पंजाब में लगभग 20 मिलियन टन धान की पराली का अनुमान है, जिसमें 3.3 मिलियन टन बासमती पराली भी शामिल है। इस समस्या का निस्तारण करने के लिए पंजाब में वर्तमान में 1.17 लाख से ज्यादा मशीनें मौजूद हैं। इसके बावजूद रिजल्ट में सुधार नहीं हुआ।
भविष्य में कैसे होगा पराली प्रबंधन
राज्य में इस समय 23,792 कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित किए गए हैं। इनकी मदद से किसान सीआरएम मशीन ले सकते हैं। पराली मैनेजमेंट के लिए राज्य सरकार ने 8,000 एकड़ धान क्षेत्र में बायो डीकंपोजर डालने की योजना भी बनाई है। पंजाब सरकार ने इस साल 1 मई से ईंट भट्ठों में धान की पराली से बने गोलों के साथ 20 प्रतिशत कोयले को अनिवार्य रूप से जलाने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिफिकेशन जारी किया था।
जैव-इथेनॉल प्लांट, बायोमास आधारित बिजली संयंत्र, कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांटों और कार्डबोर्ड कारखानें भी पराली का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करेंगे। पराली को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करने वाली इंडस्ट्री भी पंजाब में लगाई जा रही है, जिससे भविष्य में पराली को जलाने की समस्या से काफी हद तक राहत मिलेगी।