इस साल दशहरा 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन रावण के पुतले को बुराई का प्रतीक मानकर जलाया जाता है। लेकिन कुछ ऐसे स्थान हैं जहां रावण दहन नहीं किया जाता। इन जगहों पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता बल्कि रावण की मृत्यु का शोक मनाया जाता है। जानें कौन सी हैं वे जगहें और क्यों नहीं होता वहां रावण दहन। दशहरा को विजयदशमी भी कहा जाता है यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का दिन। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्म राम ने लंका के राजा रावण का वध कर विजय हासिल की थी। इसलिए बुराई की हार के प्रतीक में हर साल दशहरा पर रावण का पुतला जलाया जाता है, लेकिन भारत में कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। इसके पीछे हर जगह के अलग कारण हैं। आइए जानते हैं, कौन-कौन सी हैं वे जगहें और क्या है उसके पीछे के कारण।
मांडसौर, मध्य प्रदेश ऐसा माना जाता है कि मांडसौर रावण की पत्नी मंदोदरी का जन्म स्थान है। इसलिए यहां के निवासी रावण को अपना दामाद मानते हैं और दामाद की मृत्यु की खुशी नहीं मनाई जाती। इसलिए यहां रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि यहां दशहरा के दिन रावण की मृत्यु का शोक मनाया जाता है।यहां रावण की एक 35 फीट ऊंची मूर्ती भी है।
बिसरख, उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश में स्थित इस गांव के साथ ऐसी मान्यता है कि यहां रावण का जन्म हुआ था। इस वजह से यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और दशहरा के दिन उनकी आत्मा की शांति के लिए पार्थना करते हैं। रावण के पिता ऋषि विश्रवा और माता एक राक्षसी कैकेसी थी। ऐसा भी माना जाता है कि रावण के पिता ऋषि विश्रवा नें यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी, इसके सम्मान में इस स्थान का नाम उनके नाम पर बिसरख पड़ा और यहां के निवासी रावण को महा ब्राह्मण मानते हैं।
कांगरा, उत्तराखंड यहां के लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि कांगरा में लंकापति ने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर, उन्हें प्रसन्न कर आशिर्वाद प्राप्त किया था। इसलिए यहां के लोग रावण को महादेव का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। इसलिए यहां रावण दहन नहीं किया जाता।
मंडोर, राजस्थान यहां के लोगों का मानना है कि यह स्थान मंदोदरी के पिता की राजधानी थी और रावण ने इसी जगह पर मंदोदरी से विवाह किया था। इसलिए यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। इसलिए यहां विजयदशमी पर रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता।
गडचिरोली, महाराष्ट्र इस जगह पर गोंड जनजाति के लोग रहते हैं, जो खुद को रावण का वंशज मानते हैं। वे रावण की पूजा करते हैं और उनके अनुसार सिर्फ तुलसीदास रचित रामायण में रावण को बुरा दिखाया गया है, जो गलत है। इसलिए इस जगह पर भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता।