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पिघलते ग्लेशियरों से समुद्री जल स्तर बढ़ने के साथ वायरस और बैक्टीरिया का खतरा बढ़ रहा

दुनिया के ग्लेशियरों का अस्तित्व खतरे में है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से बढ़ते तापमान की वजह से पिघलते ग्लेशियर न सिर्फ बाढ़, अनियमित मौसम चक्र, हिमस्खलन, भूस्खलन, भुखमरी, सुनामी और जल संकट जैसी विपदाएं लाएंगे, बल्कि उनके लगातार पिघलने से उनमें हजारों सालों से दफन घातक बैक्टीरिया और वायरस भी बाहर आ सकते हैं। ये कई महामारियों का कारण बनकर भारी तबाही मचा सकते हैं।

सबसे पहले समुद्री जीव संक्रमित होंगे और फिर पक्षी…!

हाल में विज्ञानियों ने ‘प्रोसिडिंग्स आफ द रायल सोसाइटी बी : बायोलाजिक साइंस’ में प्रकाशित अध्ययन में चेताते हुए कहा है कि ग्रीन हाउस गैसों का ऐसे ही उत्सर्जन होता रहा और ग्लेशियर इसी तरह पिघलते रहे तो इनके भीतर दफन बैक्टीरिया और वायरसों के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा। इन बैक्टीरिया और वायरसों से सबसे पहले समुद्री जीव संक्रमित होंगे और फिर पक्षी व अन्य स्थानीय वन्य जीव। इसके बाद इनसे मनुष्य भी संक्रमित हो सकते हैं।

ग्लेशियर पिछलने से महामारी फैलने का जोखिम

ग्लेशियरों के नीचे दफन वायरसों के जोखिम को ढंग से समझने के लिए कनाडा की ओटावा यूनिवर्सिटी के आणविक जैव विज्ञानी डा. स्टीफन एरिस-ब्रोसो और उनके सहयोगियों ने आर्कटिक सर्किल के उत्तर में मौजूद लेक हेजेन झील, जहां स्थानीय ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी बहता है, से मिट्टी और तलछटों के नमूने इकट्ठे किए। फिर उन्होंने इन नमूनों से डीएनए और आरएनए निकाल कर उनकी सीक्वेंसिंग की, ताकि वातावरण में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया के समूहों की पहचान की जा सके। आखिर में वायरस और उनका प्रसार करने वाले जीवों के विकास क्रम के पथ के तुलनात्मक विश्लेषण से पता चला कि यहां से वायरसों के जरिये महामारी फैलने का जोखिम काफी अधिक है।

पिघलते ग्लेशियर की समस्या की गंभीरता को समझें

इस अध्ययन का सार यही है कि पिघलते ग्लेशियर न केवल समुद्री जल का स्तर बढ़ा रहे हैं, बल्कि वायरस और बैक्टीरिया के रूप में मौत के दूतों को हम तक पहुंचाने का भी इंतजाम कर रहे हैं। विज्ञानियों के अनुसार ये वायरस और बैक्टीरिया इबोला, हैजा, इन्फ्लूएंजा और मौजूदा कोविड महामारी से भी कहीं ज्यादा घातक महामारियों की वजह बन सकते हैं। ग्रीन हाउस प्रभाव की वजह से ग्लेशियरों का माइक्रो बायोस्फियर भी बदलेगा, जिससे वायरस और बैक्टीरिया बाहर निकलकर अपने लिए नए मेजबान खोजेंगे। नए होस्ट यानी वे जीव जिनको संक्रमित करके ये जीवित रह सकेंगे और प्रजनन कर अपने वंश को आगे बढ़ा पाएंगे। समय आ चुका है कि अब हम पिघलते ग्लेशियर की समस्या की गंभीरता को समझें। यदि इसमें देरी की गई तो निकट भविष्य में अन्य जीव-जंतुओं के साथ-साथ मानव जीवन के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगेगा।

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