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श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने दिया भारत को धन्यवाद, कही ये बड़ी बात

श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने बुधवार को भारत को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने संकटग्रस्त द्वीप राष्ट्र को ‘जीवन की सांस’ प्रदान की है। विक्रमसिंघे ने संसद के तीसरे सत्र के दौरान सरकार का नीतिगत बयान पेश करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके दौरान उन्होंने राजनीतिक दलों को सर्वदलीय सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।

‘भारत सरकार ने हमें जीवन की सांस दी’

रानिल विक्रमसिंघे ने कहा, ‘मैं आर्थिक पुनरोद्धार के हमारे प्रयासों में हमारे निकटतम पड़ोसी भारत द्वारा प्रदान की गई सहायता का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहता हूं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने हमें जीवन की सांस दी है। मैं अपने ओर मेरे लोगों की ओर से प्रधानमंत्री मोदी, सरकार और भारत की जनता का आभार व्यक्त करता हूं।’

21 जुलाई को विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति के रूप में ली शपथ

21 जुलाई को शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के नेतृत्व में श्रीलंका की संसद का पहला सत्र बुधवार को बुलाया गया। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में देश को अपने आर्थिक संकट से निपटने में मदद करने के लिए एक सर्वदलीय सरकार के गठन की बात को दोहराया।

‘संकट को दूर करने के लिए संसद को एकजुट होना चाहिए’

विक्रमसिंघे ने कहा कि मौजूदा संकट को दूर करने के लिए संसद को एकजुट होना चाहिए, विभाजित नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘कुछ राजनीतिक दलों ने पहले ही सर्वदलीय सरकार में शामिल होने के लिए रुचि व्यक्त की है। एक सर्वदलीय सरकार एक ऐसी सरकार नहीं है जो एक पार्टी की एकमात्र राय पर कार्य करती है। यह एक ऐसी सरकार है जो एक सामान्य नीति ढांचे के भीतर सभी दलों के विचारों को शामिल करती है और निर्णय लेने के बाद लागू करती है।’

 

’25 वर्षों के लिए तैयार कर रहे आर्थिक नीति’

श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा कि वे अगले 25 वर्षों के लिए एक राष्ट्रीय आर्थिक नीति तैयार कर रहे हैं, जो ‘एक सामाजिक बाजार आर्थिक प्रणाली की नींव रखती है, गरीब और वंचित समूहों के लिए विकास सुनिश्चित करती है और छोटे और मध्यम उद्यमियों को प्रोत्साहित करती है।’

आर्थिक संकट का सामना कर रहा श्रीलंका

2022 की शुरुआत के बाद से, श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि 5.7 मिलियन लोगों को ‘तत्काल मानवीय सहायता की आवश्यकता है।’ कई श्रीलंकाई लोगों को भोजन और ईंधन सहित आवश्यक वस्तुओं की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ा, जिसके बाद मार्च में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ।

विरोध प्रदर्शनों के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने 9 मई को इस्तीफा दे दिया और उनके भाई, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे 13 जुलाई को देश छोड़कर भाग गए और अगले दिन इस्तीफा दे दिया। इसके बाद संसद ने राजपक्षे की राजनीतिक पार्टी श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना के समर्थन से 20 जुलाई को विक्रमसिंघे को नए राष्ट्रपति के रूप में चुना।

भारत के लिए ‘पड़ोसी पहले’

इस बीच, भारत अपनी ‘पड़ोसी पहले’ नीति के तहत, कर्ज में डूबे द्वीप देश की मदद के लिए हमेशा आगे आया है। हाल ही में, भारत ने पिछले 10 वर्षों में श्रीलंका को 8 लाइन आफ क्रेडिट (LOCs) प्रदान किए हैं, जिसकी राशि 1,850.64 मिलियन अमेरिकी डालर है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में डीएमके सांसद एस रामलिंगम के सवाल का लिखित जवाब देते हुए कहा, ‘भारत सरकार ने पिछले 10 वर्षों में रेलवे, बुनियादी ढांचे, रक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम और उर्वरक सहित क्षेत्रों में श्रीलंका को 8 लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) प्रदान किए हैं, जो कि 1,850.64 मिलियन अमेरिकी डालर है।’

25 टन से अधिक दवाओं का दान

पिछले दो महीनों के दौरान सरकार और भारत के लोगों द्वारा दान की गई 25 टन से अधिक दवाओं और चिकित्सा आपूर्ति का मूल्य एसएलआर 370 मिलियन के करीब है। यह लगभग 3.5 बिलियन अमेरिकी डालर की आर्थिक सहायता और चावल, दूध पाउडर और मिट्टी के तेल जैसी अन्य मानवीय आपूर्ति की आपूर्ति के अतिरिक्त है।

 

ये मानवीय आपूर्ति भारत सरकार द्वारा श्रीलंका के लोगों को वित्तीय सहायता, विदेशी मुद्रा सहायता, सामग्री आपूर्ति, और कई अन्य रूपों में जारी समर्थन की निरंतरता में है। ये प्रयास साबित करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘पड़ोसी पहले’ की नीति, जो लोगों से लोगों के बीच जुड़ाव रखती है, अभी भी सक्रिय है।

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