नई दिल्ली। बुद्ध जयंती के मौके पर सोमवार को हो रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लुंबिनी दौरे के सहारे भारत और नेपाल साझा बौद्ध विरासत के तार मजबूत करेंगे. इस कड़ी में पीएम मोदी और नेपाली प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा एक साथ माया मंदिर में पूजा करते और अशोक स्तम्भ पर दीप जलाते नज़र आएंगे. वहीं दोनों की मौजूदगी में लुंबिनी के बौद्ध विश्वविद्यालय में भारतीय प्रोफेसर क़ई नियुक्ति समेत कई अहम समझौते भी होंगे.
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भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब 5 घंटे के दौरे पर नेपाल के लुंबिनी में रहेंगे. मोदी के नेतृत्व वाला एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल लुंबिनी पहुंच गया है. प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री मोदी एक व्यस्त कार्यक्रम के साथ इस बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी में हैं. यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली लुंबिनी यात्रा है.
इंडिया चेयर की स्थापना की जाएगी
लुंबिनी बौद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति हृदयरत्न वज्राचार्य के मुताबिक दोनों देशों के बीच होने वाले समझौते के तहत विश्वविद्यालय में इंडिया चेयर की स्थापना की जाएगी. इसके अंतर्गत बौद्ध विषयों को पढ़ाने के लिए एक भारतीय प्रोफेसर की नियुक्ति की जाएगी. यह व्यवस्था फिलहाल 5 साल के लिए वैध होगी और इसमें हर साल एक भारतीय प्रोफेसर की नियुक्ति होगी जो लुंबिनी बौद्ध विश्वविद्यालय में छह महीने के लिए एक सेमेस्टर पढ़ाएंगे.
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‘इंडिया चेयर’ की स्थापना के लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) और लुंबिनी बौद्ध विश्वविद्यालय के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने वाला है. समझौता ज्ञापन पर भारतीय दूतावास के वरिष्ठ अधिकारी और लुंबिनी बौद्ध विश्वविद्यालय के अधिकारी प्रधानमंत्री देउबा और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में हस्ताक्षर करेंगे. देशों के बीच विश्वविद्यालयों में शोध व अध्ययन कोबढावा स्थापित करने की एक अंतर्राष्ट्रीय प्रथा है. नेपाल ने करीब एक दशक पहले भारत के काशी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ‘नेपाल चेयर’ की स्थापना की थी.
नहीं हो पाएगा मानद डॉक्टरेट उपाधि देने का कार्यक्रम
हालांकि बताया जाता है कि पीएम मोदी के बेहद व्यस्त कार्यक्रम के चलते लुंबिनी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें मानद डॉक्टरेट उपाधि देने का कार्यक्रम टाल दिया गया है. विश्वविद्यालय की तरफ से उन्हें बौद्ध धर्म अध्ययन के विस्तार में योगदान के लिए यह उपाधि दी जाने की योजना थी.
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