फर्रुखाबाद न्यायालय ने 29 मार्च को 18 वर्ष पहले हुई तीन पुलिस कर्मियों व ग्रामीण की हत्या के मामले में डकैत कलुआ के साथी देवेंद्र फौजी को फांसी की सजा सुनाई है। देवेंद्र फौजी कलुआ डकैत का दाहिना हाथ था।
कटरी में आतंक का पर्याय रहे कल्लू डकैत के साथी देवेंद्र फौजी को अब फांसी की सजा सुनाई गई है। देवेंद्र कल्लू का सर्वाधिक विश्वस्त साथी था। कल्लू की मौत के बाद देवेंद्र ने कुछ समय तक गिरोह की कमान भी संभाली थी। जिस मामा नज्जू ने उसे डकैत बनाया, उसी ने जान बचाने के लिए देवेंद्र को आत्मसमर्पण का रास्ता भी दिखाया।
वर्ष 2005 से पहले तक कटरी (बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर में गंगा-रामगंगा किनारे का इलाका) में दस्यु सरगना कल्लू यादव का आतंक था। शाहजहांपुर के परौर इलाके का रहने वाला कल्लू जिस गिरोह का बादशाह था, उसकी नींव नज्जू ने रखी थी। बाद में नज्जू ने कल्लू के नेतृत्व को स्वीकार कर उसका सहयोगी बन गया था। नज्जू का भांजा देवेंद्र पीलीभीत के थाना बीसलपुर के गांव पटनिया का निवासी था।
कल्लू का एनकाउंटर करने वाले और देवेंद्र से मोर्चा ले चुके तत्कालीन इज्जतनगर थाना प्रभारी विजय राणा अब कासगंज के पटियाली में सीओ हैं। विजय राणा बताते हैं कि देवेंद्र का चाचा तब पटनिया गांव का प्रधान था। बचपन से ही देवेंद्र अपने मामा नज्जू के घर पला-बढ़ा था। यही वजह रही जो नज्जू ने युवा भांजे को कल्लू से मिलाकर अपराध की दुनिया में उतार दिया। देवेंद्र के छोटे बाल, मजबूत कद-काठी और धाकड़ स्टाइल को देखकर पहले कल्लू ने ही उसे फौजी कहना शुरू किया, बाद में पूरा गिरोह उसे देवेंद्र फौजी कहने लगा।
देवेंद्र के सीने में कई राज, न हथियार मिले न किसान
कल्लू के एनकाउंटर के बाद तीन जिलों की पुलिस ने कटरी खंगाली थी लेकिन गिरोह के पास मौजूद हथियारों का जखीरा आखिर तक नहीं मिल सका था। इनमें से कई हथियार तो पुलिस से ही छीने गए थे। अगवा किए हरियाणा के तीनों फार्मरों को भी पुलिस नहीं तलाश सकी। बताया गया कि गिरोह ने उन्हें मार दिया है लेकिन उनके शव भी नहीं मिल सके। देवेंद्र फौजी साल भर तक बचे-खुचे गिरोह का नेतृत्व करता रहा लेकिन बाद में उसने भी आत्मसमर्पण कर दिया। देवेंद्र को रिमांड पर लेकर पूछताछ की गई पर उसके सीने में दबे राज कभी बाहर नहीं आ सके।
सबसे युवा और खूंखार था देवेंद्र : विजय राणा
पटियाली सीओ विजय राणा के मुताबिक तब कल्लू, नज्जू व गिरोह के अन्य बदमाशों की अपेक्षा देवेंद्र की उम्र काफी कम थी। गिरोह में जल्दी ही उसने नंबर दो की हैसियत बना ली थी। उसे गिरोह में शॉर्प शूटर के तौर पर जाना जाता था। पुलिस से मोर्चे के दौरान वही सबसे आक्रामक तेवर दिखाता था।
पुलिस अधिकारियों के बीच यह भी हैरत की बात रही कि देवेंद्र कभी सीधे तौर पर सामने नहीं आता था। जब गिरोह घिरता था तो देवेंद्र खुद के साथ दूसरे साथियों को लेकर निकल भागता था। विजय राणा बताते हैं कि 15 जनवरी 2006 को जब फतेहगंज पूर्वी की कटरी में कल्लू को मुठभेड़ में मारा गया तो देवेंद्र नदी के उस पार से फायरिंग कर रहा था। कल्लू की बंदूक के शांत होते ही देवेंद्र भाग गया था।
देवेंद्र के गांव में सन्नाटा
बदमाश देवेंद्र फौजी को फांसी की सजा होने से उसके गांव पटनिया में सन्नाटा फैला हुआ है। फांसी की सजा होने की जानकारी लगने के बाद देवेंद्र के घर में दूसरे दिन भी चूल्हा नहीं जला। फर्रुखाबाद न्यायालय ने 29 मार्च को 18 वर्ष पहले तीन पुलिस कर्मियों व ग्रामीण की हत्या में डकैत कलुआ के साथी देवेंद्र फौजी को फांसी की सजा सुनाई है।