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देश की राजनीति में इस समय जातिगत जनगणना का मुद्दा छाया हुआ, आखिर यह मुद्दा क्यों चर्चा में है…

देश की राजनीति में इस समय जातिगत जनगणना का मुद्दा छाया हुआ है। कांग्रेस, जदयू, राजद, एनसीपी, द्रमुक और आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की है। कोविड-19 महामारी के कारण नियमित जनगणना में देरी होने के कारण जातिगत जनगणना की नए सिरे से मांग की जा रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी कर्नाटक रैलियों में दो दिनों में दूसरी बार जातिगत जनगणना की मांग की है। जातिगत जनगणना के समर्थक इसे समय की जरूरत बताते हैं, जबकि केंद्र की इस मामले पर अलग राय है।

कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने पीएम मोदी को लिखा पत्र

राहुल गांधी ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने की मांग करते हुए पीएम मोदी को 2011 की जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक डोमेन में जारी करने की चुनौती दी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर ‘तुरंत’ जनगणना कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इससे सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण को मजबूती मिलेगी।

बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक जाति आधारित जनगणना की मांग

पिछले हफ्ते तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने भी राज्य विधानसभा में केंद्र से दशकीय जनगणना के साथ-साथ एक व्यापक जातिगत जनगणना कराने का आग्रह किया था। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता अजीत पवार ने फरवरी में मांग की थी कि भाजपा-शिवसेना सरकार को बिहार जैसा जाति आधारित सर्वे कराना चाहिए। पिछले साल एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने भी सामाजिक समानता सुनिश्चित करने के लिए इसे एक आवश्यकता बताते हुए जाति आधारित जनगणना की मांग की थी।

भाजपा के ओबीसी कार्ड के दांव पर कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस के जातिगत जनगणना कराने की मांग भाजपा के ओबीसी कार्ड के दांव के पलटवार के तौर पर देखा जा रहा है। राहुल गांधी की मोदी सरनेम पर की गई टिप्पणी को लेकर भाजपा ने संसद के बजट सत्र में ओबीसी ट्रंप कार्ड खेला था। भाजपा ने इसे ओबीसी का अपमान बताया था और राहुल गांधी को घेरने की कोशिश की थी। राहुल पर ओबीसी और दलितों का अपमान करने का भी आरोप लगाया गया था। अब कांग्रेस के इस दांव से यह साफ है कि भाजपा के लिए ओबीसी अपमान का ट्रंप कार्ड चलना बिल्कुल आसान नहीं रहेगा।

जातिगत जनगणना क्या है?

जातिगत जनगणना का अर्थ है जनगणना की कवायद में भारत की जनसंख्या का जातिवार सारणीकरण शामिल करना। भारत ने केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के – 1951 से 2011 तक – जातिगत आंकड़ों को गिना और प्रकाशित किया है। यह धर्मों, भाषाओं और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से संबंधित डेटा भी प्रकाशित करता है।

क्या जातिगत जनगणना पहले किया गया था?

आखिरी बार जातिगत जनगणना 1931 में की गई थी। सभी जातिगत आंकड़ों को इसके आधार पर पेश किया जाता है। यह मंडल फार्मूले के तहत कोटा कैप का आधार बन गया। 2011 की जनगणना के लिए जाति के आंकड़े एकत्र किए गए थे, लेकिन डेटा को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।

अब क्यों हो रही जातिगत जनगणना की मांग?

यह वास्तव में एक पुरानी मांग है, जो इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि उपलब्ध डेटा-सेट 90 वर्ष पुराना है, जबकि जातियों को अक्सर कई कल्याणकारी कार्यक्रमों के आधार के रूप में लिया जाता है। राजनीतिक रूप से, भाजपा कथित तौर पर 2024 के चुनाव से पहले अपने हिंदुत्व अभियान के लिए एक संभावित चुनौती के डर से जातिगत जनगणना का विरोध करती रही है।जाति आधारित पार्टियां जाति आधारित जनगणना की प्रबल हिमायती रही हैं।

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