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यहां के लोगो ने बोला मैंने जोशीमठ को बसते हुए भी देखा और अब उजड़ते भी देख रहा हूं..

वर्तमान में उनका मारवाड़ी में अपना मकान है, जहां वो पत्नी के साथ रहते हैं। बेटा दिल्ली में नौकरी कर रहा है और दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है।

जोशीमठ में सेना का कैंप स्थापित करने के लिए जगह तलाशने की थी जिम्मेदारी

कहते हैं, ‘वर्ष 1960 में मैं बरेली में सप्लाई कोर में भर्ती हुआ। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मैं कोटद्वार स्थित कौड़िया कैंप आ गया। वर्ष 1961 में सेना ने हम नए-नवेले जवानों को जोशीमठ में सेना का कैंप स्थापित करने के लिए यहां जगह तलाशने की जिम्मेदारी सौंपी। इसके लिए कुमाऊं से सात व गढ़वाल से आठ जवान चुने गए। हमारे साथ एक ब्रिगेडियर समेत 25 से अधिक अधिकारी भी थे। हम कौड़िया कैंप से पैदल ही जोशीमठ के लिए रवाना हुए। अनुसूया प्रसाद बताते है कि ‘तब जोशीमठ व मलारी में 9-एसपीएफ (स्पेशल पुलिस फोर्स) की एक-एक प्लाटून तैनात थी। बदरीनाथ धाम की सुरक्षा का जिम्मा भी एसपीएफ के पास था। सेना व आइटीबीपी यहां बाद में आई। इस दौरान हमने वर्तमान मलारी रोड के पास खाली पड़ी जमीन का निरीक्षण किया। तब यहां बड़ी-बड़ी चट्टान व गुफाएं थीं। पास ही भोटिया पड़ाव था।

1962 में सेना ने अनुसूया प्रसाद खंडूड़ी को जोशीमठ भेजा

हम लगभग एक सप्ताह जोशीमठ में रहे। इसके बाद हम मलारी होते हुए वहीं से कुमाऊं की ओर निकल गए। वर्ष 1962 में सेना ने दूसरे दल के साथ मुझे फिर जोशीमठ भेजा। तब चमोली से कुछ आगे तक सड़क आ चुकी थी। वहां से हम पैदल ही यहां आए। तब सेना ने मलारी रोड के पास चट्टानों वाली जमीन पर छोटे-छोटे बैरक स्थापित कर लिए थे। कुछ दिन बाद हम लौट गए।’ अनुसूया प्रसाद आगे बताते हैं, ‘वर्ष 1967 में कई जवानों का सेना से सेवानिवृत्ति दे दी गई। मैं भी उनमें एक था। लेकिन, मेरे गांव पहुंचने से पहले ग्रेफ से नियुक्ति पत्र मेरे घर पहुंच चुका था। मुझे तैनाती जोशीमठ में ही मिली। धीरे-धीरे मेरा मन जोशीमठ में ही रमने लगा और फिर मैं परिवार को यहीं ले आया। वर्ष 1977 में मैंने मारवाड़ी में जमीन खरीद ली। जून 1998 में मुझे यहीं से सेवानिवृत्ति मिली, लेकिन मैं यहां वर्ष 1991 में ही मकान बना चुका था।’ मेरे यह पूछने पर कि तब जोशीमठ की तस्वीर कैसी थी, तो अनुसूया प्रसाद बोले, ‘वर्ष 1970 के बाद बसागत होने लगी थी, विशेषकर यहां सड़क पहुंचने के बाद। यहां सबसे पहला भवन थाने का बना था। तब यहां कई गदेरे थे, जिनमें अब तीन-चार ही बचे हैं।’ इतना कहते-कहते अनुसूया प्रसाद के माथे पर बल पड़ गए। कहने लगे, ‘सारा जोशीमठ धंस रहा, न जाने कब हमारा मकान भी भूधंसाव की चपेट में आ जाए। जिस गांव को वर्षों पहले छोड़ दिया था, शायद फिर वहीं का रुख करना पड़े। समझ नहीं आ रहा, कैसे छोड़ पाऊंगा, इस दिल में बस चुके शहर को।’

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