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झारखंड: इस मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकते है हेमंत सोरेन

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन दिनों दिल्‍ली में बड़े वकीलों के संपर्क में हैं। खबर है कि झारखंड सीएम हेमंत सोरेन को कथित तौर पर अयोग्य करार देने की सिफारिश संबंधी चुनाव आयोग के पत्र को राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक नहीं किए जाने के खिलाफ याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं। खबरों की मानें तो हेमंत सोरेन सुप्रीम कोर्ट की शरण में भी जा सकते हैं। सोरेन के वकील वैभव तोमर ने गुरुवार को चुनाव आयोग के सचिव को पत्र लिखकर राय की एक प्रति मांगी। इसमें तर्क दिया गया कि चुनाव निकाय में कार्यवाही न्यायिक थी। इसलिए एक प्रति उनके मुवक्किल के साथ साझा की जानी चाहिए। उन्होंने पहले ही अपनी राय भेजी थी (परिणाम दर्ज करते हुए) जांच) राज्यपाल को कई दौर की सुनवाई के बाद और बहस बंद होने के बाद आदेश सुरक्षित रखने के बाद लिखित कापियां दी गईं। 15 सितंबर को वकील द्वारा पत्र भेजा गया था। उसी दिन सीएम हेमंत सोरेन ने रांची के राजभवन में राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की। एक ज्ञापन के माध्यम से इसी तरह की मांग की। इससे पहले वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में सत्तारूढ़ यूपीए के एक प्रतिनिधिमंडल ने सरकार से मुलाकात की थी। चुनाव आयोग द्वारा 25 अगस्त को राजभवन को भेजे जाने के एक सप्ताह बाद चुनाव आयोग की राय को सार्वजनिक करने का आग्रह किया था। पत्र में सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णय का हवाला देते हुए लिखा था कि खनन पट्टा लिये जाने से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9A के प्रावधान के अंतर्गत अयोग्यता उत्पन्न नहीं होती है।इस विषय में मंतव्य गठन के लिए संविधान के अनुच्छेद 192 के अंतर्गत राज्यपाल के रेफरेंश के अनुसरण में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा सुनवाई भी आयोजित की गई। संविधान के इस प्रावधान के अनुसार निर्वाचन आयोग को अपना मंतव्य पेश कर सुनवाई को लेकर यथोचित कार्रवाई करनी है। राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात के कुछ घंटे बाद सीएम हेमंत सोरेन गुरुवार रात नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए। सीएम कार्यालय के एक सूत्र ने शुक्रवार को बताया कि वह आगे की कार्रवाई के लिए कानूनी राय लेने के लिए वरिष्ठ वकीलों से मिल रहे हैं। वह इस मामले में आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार हैं। गुरुवार को राज्यपाल को सौंपे गए ज्ञापन में मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राजभवन की ओर से चुनाव आयोग की राय को सार्वजनिक करने के लिए जनता के बीच भविष्य के बारे में भ्रम पैदा करने के लिए ‘देरी’ का इस्तेमाल कर रही है।  सोरेन ने ट्विटर पर लिखा, ‘राज्य के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते यह उम्मीद की जाती है कि आप संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करने में अग्रणी भूमिका निभाएंगे। एक निर्वाचित सरकार के प्रमुख के रूप में अधोहस्ताक्षरी (सीएम सोरेन) कानून के शासन का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसलिए अधोहस्ताक्षरी आपसे चुनाव आयोग की राय की एक प्रति और उसके बाद सही सुनवाई का अवसर प्रदान करने का अनुरोध करते हैं। जिससे अनिश्चितता की स्थिति पर हवा साफ हो सके जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।’ चुनाव आयोग ने 25 अगस्त को राज्यपाल बैस के संदर्भ पर अपने न्यायाधिकरण में सुनवाई के बाद इस मुद्दे पर अपनी राय भेजी थी। राज्य में संकट पिछले महीने के अंत में तब शुरू हुआ जब भाजपा ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए के तहत लाभ के पद के मामले में सोरेन को विधानसभा से अयोग्य ठहराने की मांग करने वाली याचिका दायर की। बाद मामले में चुनाव आयोग का कदम उठाया। सोरेन ने कथित तौर पर 2021 में मुख्यमंत्री रहते हुए और खानों के पोर्टफोलियो को अपने नाम पर पत्थर खनन पट्टे की खरीद की थी। इसके बाद भी राजभवन ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के एक प्रतिनिधिमंडल ने 1 सितंबर को राज्यपाल से मुलाकात की और उनसे चुनाव आयोग की राय सार्वजनिक करने का अनुरोध किया। इस बीच चुनाव आयोग ने 9 सितंबर को सीएम सोरेन के विधायक भाई बसंत सोरेन के खिलाफ अयोग्यता की शिकायत पर राज्यपाल को अपनी राय भी भेजी थी। भाजपा ने आरोप लगाया था कि दुमका सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले बसंत को विधानसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। राज्य में खनन पट्टे वाली दो फर्मों में भागीदार होने के लिए। चुनाव आयोग ने 5 मई को बसंत सोरेन को नोटिस जारी किया और उन्होंने 12 मई को नोटिस का जवाब दाखिल किया। राज्यपाल ने अभी इस पर भी फैसला नहीं लिया है।

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