लखनऊ। भाजपा यूपी विधानसभा का आगामी चुनाव हिंदू समाज को एकजुट कर आक्रामक तरीके से लड़ेगी। लखनऊ में शुक्रवार को प्रदेश के चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की मौजूदगी में की गई घोषणा से यह पूरी तरह साफ हो गया।
सीएम योगी के नाम और काम पर लड़ा जाएगा 2022 का चुनाव
यह भी स्पष्ट हो गया कि भाजपा अब उन कुछ अन्य दलों से और गठबंधन कर सकती है जो हिंदुओं के किसी छोटे वर्ग या जाति का नेतृत्व करते हैं। बीते कुछ माह से जारी तमाम अटकलों के बावजूद यह लगभग तय था कि, भाजपा प्रदेश में 2022 का चुनाव योगी के नाम और काम पर ही लड़ेगी।
यूपी को लेकर चल रही अटकलों पर लगा विराम
लेकिन इसकी औपचारिक घोषणा कराकर केंद्रीय नेतृत्व ने हाल ही में कुछ भाजपा शासित राज्यों में हुए नेतृत्व परिवर्तन की राह पर यूपी को लेकर चल रही अटकलों पर पूरी तरह विराम लगा दिया है।
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साथ ही उन सभी को योगी के नेतृत्व व क्षमता पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का पूरा भरोसा होने का संदेश दे दिया है जो कई तरह के अटकलों के जरिए भाजपा के खिलाफ सियासी असमंजस का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे।
भाजपा पूरी ताकत से लड़ेगी चुनाव
ऐसा करके नेतृत्व ने एक तरह से जनता के मन में हिंदुत्व के मुद्दे पर पैदा की जा रही उन दुविधाओं को भी दूर करने की कोशिश की है जिन्हें कुछ लोग हवा दे रहे थे।
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जाहिर है कि, पार्टी कार्यकर्ता और नेता अब पूरी ताकत से एकजुट होकर स्पष्ट एजेंडे के साथ चुनावी मैदान में विपक्ष पर हमला बोल सकेंगे।
इसलिए यह घोषणा अहम
योगी के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा काफी अहम है। पार्टी के पुराने लोग बताते हैं कि जनसंघ काल की बात छोड़ दें तो संभवत: पहली बार भाजपा संभावित मुख्यमंत्री के नाम और चेहरे की औपचारिक घोषणा करके चुनाव मैदान में उतर रही है।
अब तक यह तो देखा गया था कि, भाजपा के किसी नेता के कद और पद को देखते हुए पार्टी कार्यकर्ता व जनता यह मान लेती थी कि, चुनाव जीतने पर अमुक व्यक्ति मुख्यमंत्री हो सकता है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से चुनाव से पहले इसकी औपचारिक घोषणा पहली बार हुई है।
यहां तक राम जन्मभूमि आंदोलन के नायक माने जाने और हिंदूवादी चेहरा होने के बावजूद कल्याण सिंह को भी कभी चुनाव से पहले भावी मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर भाजपा चुनाव मैदान में नहीं उतरी। जाहिर है कि योगी को पार्टी का चुनावी चेहरा घोषित कर चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा भाजपा के लिहाज से बड़ा संदेश व संकेत है।
60 बनाम 40 के फॉर्मूले पर आगे बढ़े
राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो भाजपा के वर्तमान नेतृत्व ने देश व प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण की गणित से होने वाले सियासी उलटफेर को 60 बनाम 40 बनाने की रणनीति में बदल दिया है।
इसका मूल है समग्र हिंदुत्व अर्थात अगड़ों से लेकर पिछड़ों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के साथ शोषित व वंचितों को एक साथ भाजपा के साथ लाना। हिंदुत्व के भाव पर गर्व का एहसास कराते हुए इनके सरोकारों को सम्मान देने का भरोसा दिलाना।
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साथ ही स्वाभिमान की रक्षा करने की गारंटी देना तथा तुष्टीकरण, कथित धर्मनिरपेक्षता व अल्पसंख्यकवाद पर आक्रामक प्रहार करना शामिल है।
इसलिए योगी के चेहरे पर भरोसा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अब्बाजान, कांवड़ यात्रा पर पुष्पवर्षा व डीजे बजाने की इजाजत देना, जुमा पर होली पड़ने पर यह एलान कि होली साल में एक बार आती है जुमा तो हर महीने होता है जैसी टिप्पणियां व काम भले ही कथित बौद्धिक वर्ग को बहस का मुद्दा देती हों, लेकिन यह आक्रामक टिप्पणियां वर्षों से तुष्टीकरण के कारण अपनी अनदेखी झेलने वाले हिंदुओं के काफी बड़े वर्ग को उनके साथ खड़ा करती हैं।
ऊपर से अयोध्या में दिवाली, मथुरा के बरसाना में होली, काशी में देवदीपावली, प्रयागराज में कुंभ के प्रबंधन ने भी हिंदुओं के बीच उनकी पकड़ व पैठ काफी मजबूत की है।
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लविवि के राजनीति शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसके द्विवेदी कहते हैं कि, साढ़े चार साल की सरकार के दौरान योगी सरकार की सबसे बड़ी पूंजी विकास के साथ वह आक्रामक हिंदुत्व ही है जिसने उन दलों को मंदिर जाने, खुद को हिंदू बताने और अपना चुनाव अभियान अयोध्या से शुरू करने को मजबूर कर दिया जो चार साल पहले मुस्लिम वोटों की नाराजगी के भय से इनसे दूर रहते थे।
योगी ने हिंदुत्व पर सिर्फ भाषण नहीं दिए हैं, बल्कि लव जिहाद पर कानून बनाकर, धर्मांतरण पर नियंत्रण को कदम उठाकर, जनसंख्या नियंत्रण कानून पर आगे बढ़कर हिंदुओं को यह भरोसा भी दिया है कि उनके हित सुरक्षित हैं।
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जाहिर है कि चुनाव में योगी ही प्रदेश में हिंदुत्व के इस भाव को वोटों में बदल सकते हैं। रही बात संजय निषाद की भाजपा के साथ चुनाव लड़ने की औपचारिक घोषणा की तो यह भी भाजपा की समग्र हिंदुओं की लामबंदी की रणनीति है।
ये भी है अहम वजह
प्रो. द्विवेदी का निष्कर्ष सही है। संजय निषाद की पार्टी का कितना प्रभाव है या कितनी सीटों को वह प्रभावित करते हैं, यह बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन राजनीति में प्रतीकों व संकेतों के संदेशों का बड़ा महत्व होता है।
उस लिहाज से संजय निषाद का भाजपा के साथ चुनाव मैदान में जाने का एलान एक तरह से उन छोटे दलों के नेताओं को जो हिंदुओं के छोटे-छोटे वर्गों व जातियों के समूहों का नेतृत्व करते हैं को भी साथ आने का आमंत्रण है।
जाहिर है कि, भाजपा की कोशिश किसी न किसी तरह पूरे हिंदू समाज को एकजुट करना है। ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि ओमप्रकाश राजभर जैसे नेता भी जल्द ही किसी न किसी भूमिका में भाजपा के साथ खड़े दिखें।
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