घट स्थापना पर इन पूजा सामग्री का करें प्रयोग
- जौ
- मिट्टी
- जल का कलश
- लौंग
- कपूर
- मौली
- रोली
- चावल
- सिक्के
- अशोक
- आम के पत्ते
- नारियल
- चुनरी
- फल
- फूल
नवरात्रि पर आज इस उपाय से करें मां शैलपुत्री को प्रसन्न
नवरात्रि के पहले दिन देवी आदि शक्ति दुर्गा के पहले स्वरूप की पूजा होती है। मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।माँ की कृपा पाने के लिए इस दिन मंदिर में त्रिशूल अर्पित करें।आज कैसे करें घटस्थापना, जानें पूरी पूजा विधि
– सबसे पहले सुबह स्नान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। – फिर इसके बाद पूजा स्थल पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। – फिर मिट्टी के बर्तन में मिट्टी डाले और उसमें जौ मिला दें। – भगवान गणेश का नाम लें और मां दुर्गा का स्मरण करते हुए अखंड ज्योति जलाएं। – तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं और मौली बांध दें। – लोटे में गंगाजल मिलाकर पानी भर दें। – फिर इस पात्र में सिक्के, सुपारी, अक्षत और फूल डालें। – कलश में अशोक और आम के पत्ते लगाएं। – इसके बाद सभी तरह की पूजन सामग्री को एकत्रित करते हुए पूजा आरंभ करें।शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में 9 देवियों के 9 बीज मंत्र
शारदीय नवरात्रि के दिन | देवी | बीज मंत्र |
पहला दिन | शैलपुत्री | ह्रीं शिवायै नम:। |
दूसरा दिन | ब्रह्मचारिणी | ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:। |
तीसरा दिन | चन्द्रघण्टा | ऐं श्रीं शक्तयै नम:। |
चौथा दिन | कूष्मांडा | ऐं ह्री देव्यै नम:। |
पांचवा दिन | स्कंदमाता | ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:। |
छठा दिन | कात्यायनी | क्लीं श्री त्रिनेत्राय नम:। |
सातवाँ दिन | कालरात्रि | क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:। |
आठवां दिन | महागौरी | श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:। |
नौवां दिन | सिद्धिदात्री | ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:। |
शारदीय नवरात्रि बना शुभ योग
आज से शुभ नवरात्रि का महापर्व प्रारंभ हो गया है। आज से आने वाले 9 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा-आराधना की जाएगी। इस बार शारदीय नवरात्रि बहुत ही शुभ योग में शुरू हुआ है। आपको बता दें कि 15 अक्तूबर, सोमवार को बुधादित्य योग, सुनफा योग, वेशी योग और लक्ष्मी योग का संयोग बना हुआ है। इसके अलावा देवी दुर्गा का आगमन हाथी की सवारी के साथ हुआ है जिसे भी बहुत शुभ माना गया है।नवरात्रि के 9 दिन के अनुसार भोग
शारदीय नवरात्रि 2023 | नवरात्रि के दिन | माता का भोग |
पहला दिन | माँ शैलपुत्री देवी | देसी घी |
दूसरा दिन | ब्रह्मचारिणी देवी | शक्कर,सफेद मिठाई,मिश्री और फल |
तीसरा दिन | चंद्रघंटा देवी | मिठाई और खीर |
चौथा दिन | कुष्मांडा देवी | मालपुआ |
पांचवां दिन | स्कंदमाता देवी | केला |
छठा दिन | कात्यायनी देवी | शहद |
सातवां दिन | कालरात्रि देवी | गुड़ |
आठवां दिन | महागौरी देवी | नारियल |
नौवां दिन | सिद्धिदात्री देवी | अनार और तिल |
नवरात्रि के पहले दिन मां को लगाएं ये भोग
कलश स्थापना के साथ आज से देवी शक्ति की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्रि का पर्व आरंभ हो गया है। नवरात्रि के पहले देवी के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की उपासना का महत्व होता है। माता शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं, इसीलिए इनको सफेद रंग बेहद प्रिय है।इस दिन मां को गाय के घी का भोग लगाना शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री को घी का भोग अर्पित करने पर आरोग्य की प्राप्ति होती है और देवी मां अपने भक्तों को हर संकट से मुक्ति देती है।नवरात्रि कलश स्थापना की पूजन सामग्री
नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा करने का विधान होता है। कलश स्थापना के साथ ही पूजा आरंभ हो जाती है। शास्त्रों के अनुसार मां दुर्गा की पूजा में कई तरह की पूजन सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। मां दुर्गा लाल रंग बहुत ही प्रिय होता है। कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, कलश, चुनरी, जौ, मिट्टी, मौली, कपूर, रौली, पान-सुपारी, साबुत चावल, आम के पत्ते, फल-फूल और श्रृंगार की सभी चीजें।नवरात्रि के पहले दिन कैसे करें मां दुर्गा की आराधना, जानिए संपूर्ण पूजा विधि
आज से पवित्र शारदीय नवरात्रि का महापर्व प्रारंभ हो गया है। आज से 9 दिनों के लिए देवी दुर्गा घर-घर विराजेंगी। नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है आइए जानते हैं नवरात्रि के पहले दिन कैसे करें मां की पूजा..- नवरात्रि के दिन सुबह घर को साफ-सुथरा करके मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक बनाएं और सुख-समृद्धि के लिए दरवाजे पर आम या अशोक के ताज़े पत्तों का तोरण लगाएं।
- सुबह स्नानादि करके माता दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर स्थापित करना चाहिए।
- मां दुर्गा की मूर्ति के बाईं तरफ श्री गणेश की मूर्ति रखें।उसके बाद माता के समक्ष मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं,जौ समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक माने जाते हैं।
- माँ की आराधना के समय यदि आपको कोई भी मन्त्र नहीं आता हो तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ से पूजा कर सकते हैं व यही मंत्र पढ़ते हुए पूजन सामग्री अर्पित करें।
- देवी को श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरुर चढ़ाएं ।
- अपने पूजा स्थल से दक्षिण-पूर्व की तरफ घी का दीपक जलाते हुए ‘ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः। दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तुते’ यह मंत्र पढ़ें और आरती करें।
- देवी माँ की पूजा में शुद्ध देसी घी का अखंड दीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है,नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं,रोग एवं क्लेश दूर होकर सुख-समृद्धि आती है।
घट स्थापना का सबसे सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त
शुभ में आज से शारदीय नवरात्रि का महापर्व प्रारंभ हो गए हैं। घट स्थापना के साथ आने वाले 9 दिनों तक लगातार देवी दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा उपासना की जाएगी। इस बार कलश स्थापना के लिए ज्यादा मुहूर्त नहीं मिलेंगे। घटस्थापना का सबसे अच्छा और सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त आज सुबह 9 बजकर 27 मिनट से 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।जानें आज कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि का पवित्र पर्व आज से प्रारंभ हो चुके हैं। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करके देवी दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है। घटस्थापना और देवी पूजा प्रात: काल करने का विधान हैं। लेकिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में कलश स्थापना वर्जित है। पंचांग के अनुसार, 15 अक्टूबर, रविवार, चित्रा नक्षत्र सायं 6:12 मिनट तक है और वैधृति योग सुबह 10:24 मिनट तक रहेगा। ऐसे में आज अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना की जा सकती है। 15 अक्तूबर 2023 को अभिजीत मुहूर्त 11:31 मिनट से लेकर 12:17 मिनट तक रहेगा। इस दौरान आप घटस्थापना कर सकते हैं।मां शैलपुत्री की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति . तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को . उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै. रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी . सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती . कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती . धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू. बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी. मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती . श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै . कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥