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कुशीनगर से स्पेशल रिपोर्ट—45 साल बाद घर लौटा बेटा, पूरे गांव की आंखें नम हुईं

एंकरआज आपको दिखाते हैं कुशीनगर से एक ऐसी मानवीय कहानी… जिसमें बिछड़ने का दर्द भी है… इंतज़ार की लंबी रातें भी… और 45 साल बाद हुए मिलन की वो सुबह भी, जिसने पूरे गांव को भावुक कर दिया। देखिए ये खास रिपोर्ट…


कुशीनगर ज़िले के खड्डा ब्लॉक का छोटा-सा गांव सिसवा गोपाल—आज यहां सिर्फ एक व्यक्ति नहीं लौटा…
आज लौट आईं 45 साल पुरानी यादें, लौट आया एक बेटा…
तैयब अंसारी

साल 1980—परिवार में किसी बात को लेकर नाराज़गी हुई… और बस, भावनाओं के तूफ़ान में बहकर तैयब ने अपना घर-बार छोड़ दिया। जाते-जाते किसी ने नहीं सोचा था कि यह जुदाई 45 साल लंबी होगी…
45 साल—यानि आधी ज़िंदगी।

इन बरसों में तैयब पंजाब गए… फिर राजस्थान… और उसके बाद गुजरात की गलियों से होते हुए आखिरकार यूपी के शामली जा पहुंचे—जहां उन्होंने शादी की, एक छोटा-सा परिवार बसाया… पत्नी और दो बच्चों के साथ किराए पर रहकर जैसे-तैसे जीवन चला रहे थे।
पर दिल के कोने में गांव की याद… घर की छत… आंगन की खुशबू… और अपने अपनों की तस्वीर हमेशा तैरती रहती थी।


लेकिन किस्मत ने रास्ता बनाया — SIR फॉर्म ने बदली किस्मत

तैयब को खुद भी नहीं पता था कि SIR (Status of Identity Record) फॉर्म उनकी किस्मत का दरवाज़ा दोबारा खोलेगा।

उनके पिता का 2003 में बना अंतिम SIR रिकॉर्ड और उस समय की मतदाता सूची—एक धागे की तरह बने, जिसने तैयब को उनके मूल गांव और परिवार से फिर जोड़ दिया।
सरकारी रिकॉर्ड के ज़रिए मिली यह जानकारी इतनी महत्वपूर्ण साबित हुई कि तैयब को 45 साल बाद गांव लौटने का फ़ैसला लेना पड़ा।


45 साल बाद जब गांव पहुंचा बेटा…

जब तैयब अंसारी गांव पहुंचे…
तो सिसवा गोपाल गांव ठहर-सा गया
लोग घरों से बाहर निकल आए…
हर किसी की आंखें नम… किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि 45 साल बाद खोया हुआ बेटा, भाई, रिश्तेदार फिर से सामने खड़ा है।

घर का दरवाज़ा खुला…
और जैसे ही तैयब अंदर पहुंचे—परिवार फूट-फूटकर रो पड़ा।
यह सिर्फ एक मिलन नहीं था… यह अतीत और वर्तमान का संगम था।
एक अधूरी कहानी का फिर से शुरू होना था।


तैयब अंसारी ने कहा— “SIR फॉर्म ने मुझे घर दिला दिया”

तैयब कहते हैं—

“अगर SIR की प्रक्रिया न होती… तो मैं शायद कभी अपने गांव नहीं लौट पाता। भारत सरकार का धन्यवाद… इस फॉर्म ने मुझे मेरा खोया हुआ घर वापस दिला दिया।”

गांव पहुंचकर तैयब ने अपने बचपन की गलियों को देखा… पुराने पेड़ छुए… आंगन की मिट्टी को माथे से लगाया… और अपने परिवार को सीने से लगा लिया।


परिवार की प्रतिक्रिया (भाई की बाइट का संदर्भ)

तैयब के भाई भावुक होकर कहते हैं—

“हमें लगा था कि वो अब कभी वापस नहीं आएगा… 45 साल हो गए थे… लेकिन आज वो सामने है। ये हमारे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं। SIR की वजह से हमारा परिवार दोबारा पूरा हुआ है।”


इतना लंबा इंतज़ार… इतनी पुरानी यादें… और फिर हुआ दिल को छू लेने वाला मिलन। यह कहानी बताती है कि कभी-कभी सरकारी प्रक्रिया भी इंसान की ज़िंदगी में सबसे बड़ी खुशी लेकर आ जाती है। 45 साल बाद लौटे तैयब अंसारी की कहानी पूरे प्रदेश के लिए संदेश है—कि उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए… क्योंकि घर और रिश्तों के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं।

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