Friday , October 25 2024

कुमार विश्वास: कविता में आनंद तो रामकथा में मिलता है परमानंद

मौजूदा दौर में रूमानी गीतों के लोकप्रिय गायक और आध्यात्मिक चिंतक डॉ. कुमार विश्वास का कहना है कि उन्हें कविता में आनंद आता है तो रामकथा-कृष्ण कथा में परमानंद आता है। कविता तात्कालिक रूप से मन को प्रसन्न करती है जबकि कथा आत्मा की शाश्वत खुराक है।                  

मुझे दोनों ही अच्छी लगती हैं। जब समाज में किसी व्यक्ति को नायकत्व मिल जाता है तो उसका दायित्व है कि वह अपने जैसे और लोग समाज को दे। मुझे देख सुन कर नई पीढ़ी के लोग गीतों और मुक्तकों के रचनाकर्म में उतरते हैं तो यही मेरा साध्य है। मेरी रामकथा से परिवार बिखरने से बचता है तो मुझे संतोष मिलता है।         

डॉ. कुमार विश्वास से जब यह पूछा गया कि वह अपनी कविताओं और गीतों का मूल्यांकन साहित्यिक अथवा लोकप्रिय रचना में किस श्रेणी में करते हैं तो उनका कहना था कि वह लोकप्रिय कविता और साहित्यिक कविता की विभाजनरेखा नहीं मानते। कौन सी रचना किस दौर में लोकप्रिय हो या साहित्यिक श्रेणी में शामिल हो, यह तो केवल समय तय करता है।              

जब तुलसी ने संस्कृत की जगह अवधी में रामचरित मानस लिखी तो उस वक्त उनका मजाक उड़ाया गया। कबीर को भी बहुत बाद में साहित्यकार माना गया। केशव दास के तो नौकर-चाकर भी संस्कृत बोलते थे। खुद को भाषा में कविता करने की वजह से खुद को जड़मति करार दिया। लेकिन सब को साहित्य ने अंगीकार किया।             

इसलिए मेरी कविताएं किस श्रेणी में देखी और परखी जा रही हैं, मैं बहुत परवाह नहीं करता। लेकिन मेरा शुद्ध साहित्यिक रचनाकारों से कोई विरोध नहीं है। मैं तो चाहता हूं कि साहित्यिक लोग कुछ गुण लोकप्रिय रचनाकारों को दें और लोकप्रिय रचनाकार अपना हुनर साहित्यिक लोगों को दें।           

डॉ. कुमार विश्वास स्वीकार करते हैं कि बहुत सतही कविता भी मंच से पढ़ी जा रही है। एक दौर था, जब रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन और नीरज जैसे साहित्य में स्थान रखने वाले लोग मंचों से भी कविता पाठ किया करते थे। लेकिन 70 के दशक में सियासी उथल-पुथल की वजह से कविताएं तात्कालिक हो गईं।          

ज्यादातर रचनाएं सियासत के इर्द-गिर्द घूमने लगीं। मंचों से पढ़ी जाने पर इन्हें तालियां और वाहवाही भी मिलने लगी। ऐसे में विशुद्ध साहित्यिक कवि मंचों से दूर होने लगे। हालांकि उन्हें अड़ना और लड़ना चाहिए था। ऐसे हालात में मंचों पर हल्के रचनाकारों और सतही कविता का कब्जा हो गया। लेकिन दौर बदला है। मौजूदा दौर में गीत लौट आए हैं। अच्छी कविताएं भी अब मंच से पढ़ी जा रही हैं।                

डॉ. कुमार विश्वास कहते हैं कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि एक मास्टर का बेटा, कुछ दशकों पर पहले सौ रुपये पर कविता पढ़ने वाला शख्स आज एक कार्यक्रम के लाखों ले रहा है, उनसे मेरा प्रतिप्रश्न है कि हिंदी के साधक को क्यों दीन-हीन और दरिद्र रहना चाहिए।             

मुझसे किसी को फायदा होता है तो होता रहे, मैं सियासत में नहीं हूं            

रामकथा और कृष्ण कथाओं की ओर रुख करने वाले पंडित-प्रवचनकर्ता की भूमिका के बारे में पूछने पर डॉ. कुमार विश्वास कहते हैं कि नई पीढ़ी को संस्कारित करने का दायित्व मेरे जैसे लोगों का है। मैं इस उम्र में पहुंच गया हूं कि आध्यात्मिक क्षेत्र मुझे लुभाता है। लेकिन घर-परिवार है।                  

संन्यासी नहीं हूं, गृहस्थ हूं , इसलिए कविता से जीविकोपार्जन करता रहूंगा। जब यह पूछा गया कि आपकी रामकथा और कृष्ण कथा भाजपा की विचारधारा के ज्यादा अनुकूल है। इससे पार्टी विशेष को फायदा पहुंच सकता है, क्या यह आप नहीं सोचते। विश्वास कहते हैं कि यह सोचना मेरा काम नहीं है। किसी को फायदा होता रहे। फिलहाल मैं सियासत में नहीं हूं।

Check Also

अब आसमान में उड़ान भरेगा यूपी का पहला ‘शंख’! सरकार से नई एयरलाइन को मिली मंजूरी

Shankh Airline : भारत के आसमान में अब ‘शंख’ उड़ान भरेगा। एयर इंडिया, इंडिगो और अकासा …