रायबरेली (हिंद न्यूज़ 24×7) – रायबरेली के सलोन क्षेत्र में बारावफात जुलूस के दौरान कुछ लोगों द्वारा फिलिस्तीनी झंडा लहराने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तारी की है। इस घटना ने न केवल स्थानीय स्तर पर चर्चा पैदा की है, बल्कि भारत की विदेश नीति और जमीनी कार्रवाई के बीच विरोधाभास पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
भारत की विदेश नीति लंबे समय से फिलिस्तीन के समर्थन में रही है। देश ने 1974 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता दी थी और 1988 में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में शामिल हुआ। हाल ही में, भारत ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) को 2.5 मिलियन डॉलर का दान भी दिया है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, फिलिस्तीन का समर्थन भारत की विदेश नीति का अभिन्न हिस्सा है।
पूर्व आईपीएस अधिकारी आर.के. विज ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसी भी एफआईआर की कार्रवाई तभी उचित होती है जब झंडा लहराने की क्रिया से हिंसा भड़काने, सार्वजनिक अव्यवस्था फैलाने या समाज में नफरत फैलाने जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हों। सलोन के इस मामले में ऐसा कोई प्रमाण सामने नहीं आया है।
इस बीच, विश्व हिंदू परिषद के मंत्री विवेक ने भी इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत की विदेश नीति और स्थानीय प्रशासन की कार्रवाई के बीच असमानता साफ दिखाई दे रही है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस तरह की संवेदनशील घटनाओं में कानून को सही ढंग से लागू किया जाना चाहिए ताकि किसी भी तरह की सामाजिक अस्थिरता न उत्पन्न हो।
विशेषज्ञों का मानना है कि फिलिस्तीनी झंडा लहराने की घटना और इसके बाद हुई गिरफ्तारी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या स्थानीय प्रशासन के निर्णय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों के अनुरूप हैं या नहीं।
इस मामले ने सोशल मीडिया पर भी भारी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे पुलिस की कड़ी कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं, जबकि कई लोग इसे भारत की परंपरागत विदेश नीति के खिलाफ कदम मान रहे हैं।
रायबरेली पुलिस ने मामले में कहा है कि गिरफ्तारी फिलहाल जुलूस के दौरान शांति और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई है और जांच जारी है।
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