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बिहार सरकार पर CAG की सख्त टिप्पणी, 70,000 करोड़ रुपये के उपयोगिता प्रमाणपत्र लंबित, बजट का सिर्फ 80% खर्च

Bihar News: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक कैग ने बिहार सरकार की वित्तीय लापरवाही पर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार सरकार 70 हजार करोड़ रुपय उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीं कराए हैं। ऐसे में धन के खर्च को लेकर लगातार सवाल उठना शुरू हो गए हैं। पढ़ें सौरभ कुमार की रिपोर्ट…

Bihar CAG report 2025: बिहार सरकार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में गंभीर वित्तीय लापरवाही के लिए कठघरे में खड़ा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार 70,877 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन के उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) समय पर जमा करने में विफल रही है, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह धन वास्तव में निर्धारित उद्देश्यों के लिए खर्च हुआ भी या नहीं। कैग रिपोर्ट के मुख्य बिंदु-

49,649 उपयोगिता प्रमाणपत्र लंबित:

31 मार्च 2024 तक बिहार के महालेखाकार कार्यालय को यह प्रमाणपत्र नहीं मिले, जिनके बिना खर्च की पारदर्शिता और जवाबदेही संदिग्ध हो जाती है।

गबन-दुरुपयोग का खतरा

रिपोर्ट में कहा गया है कि UC के अभाव में यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि राशि का उपयोग नियत उद्देश्य के लिए हुआ। इससे भ्रष्टाचार और वित्तीय कुप्रबंधन की आशंका बढ़ जाती है।

सबसे ज्यादा लापरवाह विभाग

पंचायती राज विभाग (₹28,154 करोड़), शिक्षा विभाग (₹12,624 करोड़), शहरी विकास विभाग (₹11,066 करोड़), ग्रामीण विकास विभाग (₹7,800 करोड़), और कृषि विभाग (₹2,108 करोड़) UC न देने वालों में शीर्ष पर हैं।

AC बिलों की भी अनदेखी

₹9,205.76 करोड़ की अग्रिम राशि निकाली गई थी, लेकिन इनके बदले डीसी (विस्तृत) बिल अब तक जमा नहीं किए गए, जो नियमों का सीधा उल्लंघन है।

बजट खर्च में कमी

2023-24 में राज्य का कुल बजट ₹3.26 लाख करोड़ था, लेकिन केवल ₹2.60 लाख करोड़ (79.92%) ही खर्च किया जा सका।

बचत राशि भी खर्च नहीं

कुल बचत ₹65,512 करोड़ में से सिर्फ ₹23,875 करोड़ (36.44%) ही समर्पित किए गए।

बढ़ता कर्ज बोझ

राज्य की कुल देनदारियों में 12.34% की वृद्धि दर्ज की गई। कुल आंतरिक ऋण ₹28,107 करोड़ बढ़ा, जो कुल देनदारियों का 59.26% है।

राजकोषीय लक्ष्य विफल

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार सरकार 2023-24 में पंद्रहवें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित राजकोषीय लक्ष्यों को भी हासिल नहीं कर सकी।

राजनीतिक और प्रशासनिक सवाल

इस रिपोर्ट से बिहार सरकार की वित्तीय कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठे हैं। विशेषज्ञों और विपक्षी दलों ने मांग की है कि लंबित उपयोगिता प्रमाणपत्रों की जल्द से जल्द जांच हो और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। वहीं, यह भी स्पष्ट है कि संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता के बिना बिहार की आर्थिक स्थिति और जनहित योजनाएं खतरे में पड़ सकती हैं।

CAG की यह रिपोर्ट सिर्फ आंकड़ों का लेखा-जोखा नहीं, बल्कि बिहार की शासन व्यवस्था में गहराते वित्तीय अनुशासनहीनता की एक गंभीर चेतावनी है। यदि इसे समय रहते नहीं सुधारा गया, तो न केवल विकास योजनाओं पर असर पड़ेगा, बल्कि जनता का विश्वास भी डगमगाएगा।

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