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योगी सरकार का फैसला, अब ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के नाम से जाना जाएगा काकोरी कांड

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए काकोरी कांड का नाम बदलकर काकोरी ट्रेन एक्शन रख दिया है. अब काकोरी कांड को काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से जाना जाएगा। नाम बदलने को लेकर सरकार का कहना है कि, अंग्रेजी शासन के कुछ इतिहासकारों ने इस क्रांति को कांड करार दिया था, जो अपमानजनक लगता था. इसलिए स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में इसमें बदलाव करना जरूरी था.

काकोरी कांड की 97वीं वर्षगांठ पर सीएम योगी का बड़ा फैसला

काकोरी कांड की 97वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में योगी सरकार ने यह फैसला किया है. इससे पहले योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को इस घटना की वर्षगांठ पर काकोरी स्मारक समिति पर आयोजित एक समारोह में काकोरी षडयंत्र के नेताओं राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी की प्रतिमाओं पर श्रद्धांजलि दी.

उन्होंने कहा, काकोरी एक्शन की कहानी हमें सदैव इस बात का अहसास कराती है कि देश की स्वाधीनता से बढ़कर कुछ नहीं.

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि, काकोरी ट्रेन एक्शन के मामले में कहा जाता है कि, जो क्रांतिकारी थे उन्होंने जिस घटना को अंजाम दिया था उसमें उनके हाथ लगे थे मात्र 4600 रुपये मगर अंग्रेज़ों ने उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा करने से लेकर फांसी पर लटकाने तक की कार्रवाई में 10 लाख रुपये ख़र्च किये थे.

क्या है काकोरी ट्रेन एक्शन ?

बता दें कि, स्‍वतंत्रता आंदोलन को तेज करने के लि‍ए धन की जरूरत थी. इसके लि‍ए क्रांति‍कारियों ने शाहजहांपुर में एक मीटिंग की. इसमें राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई. इसके अनुसार राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को चेन खींचकर रोका.

ट्रेन पर धावा बोल लूटा था सरकारी खजाना

क्रांति‍कारी पंडि‍त राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाकउल्ला खां, पं. चंद्रशेखर आजाद और अन्य सहयोगियों की मदद से ट्रेन पर धावा बोला. उन्‍होंने सरकारी खजाना लूट लिया. इसे ही काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है. अंग्रेजी हुकूमत ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के कुल 40 क्रांति‍कारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने का केस चलाया.

क्रांतिकारियों का कालापानी और आजीवन कारावास की सजा

इसमें राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, पं. राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. इस केस में 16 अन्य क्रांति‍कारियों को कम से कम 4 साल की सजा से लेकर अधिकतम कालापानी और आजीवन कारावास तक का दंड दिया गया.

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