जालौन – यूरिया खाद की किल्लत से जूझते किसान, लाइन में बीत रही रातें
जालौन से इस वक्त की बड़ी और गंभीर खबर सामने आ रही है, जहां जनपद भर में यूरिया खाद की भारी किल्लत ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। रबी की फसल के इस अहम समय में खाद न मिलने से किसान बेहद परेशान और हताश नजर आ रहे हैं। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि किसान एक-एक बोरी खाद के लिए सहकारी समितियों और मंडी स्थित पीसीएफ के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
तस्वीरें जालौन की मंडी पीसीएफ से हैं, जहां सुबह से ही किसानों की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। किसान घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, लेकिन शाम तक भी उन्हें खाद नहीं मिल पाती। कई किसानों ने बताया कि वे तड़के चार बजे से लाइन में लग जाते हैं, फिर भी नंबर आने तक खाद खत्म होने की बात कहकर लौटा दिया जाता है।
किसानों का आरोप है कि हालात इतने खराब हैं कि मजबूरी में कई किसानों को रात भर कड़ाके की ठंड में पीसीएफ के बाहर ही लेटना पड़ता है, ताकि सुबह सबसे पहले खाद मिल सके। इसके बावजूद भी सुबह होने पर कभी मशीन खराब होने का बहाना बना दिया जाता है तो कभी स्टॉक खत्म होने की बात कह दी जाती है।
किसानों ने पीसीएफ इंचार्ज पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि रात के समय चोरी-छिपे खाद की ब्लैक मार्केटिंग की जाती है। आरोप है कि इंचार्ज अपनी कुर्सी पर प्राइवेट लोगों को बैठाकर रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों को पहले ही खाद उपलब्ध करा देते हैं, जबकि ईमानदारी से लाइन में खड़े किसानों को खाली हाथ लौटना पड़ता है।
किसानों का कहना है कि दिन भर लाइन में खड़े रहने के बाद अगर खाद मिल भी जाए तो सिर्फ एक या दो बोरी देकर टरका दिया जाता है, जबकि फसल के लिए ज्यादा खाद की जरूरत होती है। मजबूरी में किसान प्राइवेट दुकानों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां यूरिया की एक बोरी के लिए 400 से 450 रुपये तक वसूले जा रहे हैं, जो निर्धारित सरकारी मूल्य से कहीं ज्यादा है।
किसानों का दर्द यहीं खत्म नहीं होता। एक तरफ फसलों का सही दाम नहीं मिल रहा, ऊपर से समय पर खाद भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। ऐसे में किसानों की लागत लगातार बढ़ती जा रही है और मुनाफा घटता जा रहा है। किसान सवाल कर रहे हैं कि अगर सरकारी केंद्रों पर खाद नहीं मिलेगी तो वे आखिर जाएं तो जाएं कहां?
जिला प्रशासन की ओर से दावा किया जा रहा है कि जनपद में खाद की कोई कमी नहीं है और पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोलती नजर आ रही है। खेतों में खड़ी फसल खाद के इंतजार में सूखने की कगार पर है और किसान रोजाना केंद्रों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि किसानों को कब तक यूरिया खाद के लिए यूं ही भटकना पड़ेगा? कब प्रशासन इस समस्या को गंभीरता से लेकर ठोस कार्रवाई करेगा? और कब किसानों को ब्लैक मार्केटिंग और लापरवाही से राहत मिलेगी? यही सवाल आज जालौन का किसान पूछ रहा है।
अगर समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो इसका सीधा असर फसल उत्पादन पर पड़ेगा, जिसका खामियाजा न सिर्फ किसान बल्कि आम जनता को भी भुगतना पड़ सकता है। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन कब तक जागता है और किसानों को इस संकट से राहत दिलाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।
रिपोर्ट :- हरिमाधव मिश्र
जनपद :- जालौन
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