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यूपी में कृषि नीति में बड़ा बदलाव: निजी किसान मंडियों की शुरुआत, इन शहरों से होगी पहल

लखनऊ।
उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने और कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए बड़ा कदम उठाने जा रही है। राज्य सरकार अब प्रदेश में निजी क्षेत्र की किसान मंडियों (Private Farmers Markets) की स्थापना की दिशा में नीति परिवर्तन करने की तैयारी में है। यह कदम कृषि नीति में एक ऐतिहासिक बदलाव माना जा रहा है, जिससे किसानों को न केवल उनकी फसलों के बेहतर दाम मिलेंगे बल्कि आधुनिक सुविधाओं तक आसान पहुंच भी होगी।

नई नीति के तहत नियम होंगे सरल, निवेशकों को मिलेगी राहत

राज्य सरकार ने निजी क्षेत्र में मंडियों की स्थापना के लिए नियमों को सरल और निवेशकों के अनुकूल बनाने का निर्णय लिया है। अब तक के नियमों के तहत बड़े शहरों में मंडी स्थापित करने के लिए कम से कम दो हेक्टेयर भूमि और 10 करोड़ रुपये की परियोजना लागत तय थी, जबकि छोटे शहरों में यह मानक पांच करोड़ रुपये का था। लेकिन शहरी इलाकों में इतनी जमीन और भारी निवेश जुटाना निजी क्षेत्र के लिए मुश्किल साबित हुआ।

इसी वजह से निजी निवेशक आगे नहीं आ पाए। अब सरकार ने इन मानकों में कटौती करने की तैयारी शुरू की है। जमीन के क्षेत्रफल और प्रतिभूति राशि को घटाकर निवेशकों को राहत दी जाएगी, ताकि अधिक से अधिक निजी कंपनियां और संस्थाएं इस क्षेत्र में आ सकें।

किन शहरों से होगी शुरुआत

प्रदेश के जिन 17 प्रमुख नगरों में पहले चरण में निजी किसान मंडियों की स्थापना का प्रस्ताव है, उनमें लखनऊ, कानपुर, आगरा, बरेली, बाराबंकी, वाराणसी, ललितपुर, गोरखपुर, प्रयागराज, शाहजहांपुर, लखीमपुर, गाजियाबाद, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, अलीगढ़, मुरादाबाद और सहारनपुर शामिल हैं।
वहीं, पांच करोड़ की परियोजना लागत वाली मंडियां अन्य जिला मुख्यालयों और विकासशील कस्बों में स्थापित की जाएंगी।

सरकार देगी बुनियादी सुविधाओं में सहूलियत

निजी मंडियों के लिए नीलामी हॉल, गोदाम, भंडारण केंद्र, दुकानों, पैकेजिंग यूनिट, प्रयोगशाला, पेयजल, सड़क, बिजली और कैंटीन जैसी सुविधाएं अनिवार्य हैं। सरकार इस दिशा में निवेशकों को मदद देने पर विचार कर रही है।
भूमि हस्तांतरण के दौरान स्टांप शुल्क, बिजली कनेक्शन और पेयजल की व्यवस्था जैसी सुविधाएं भी सरकार की ओर से मुहैया कराई जा सकती हैं।

वर्तमान में प्रदेश में 249 विनियमित मंडियां और 356 उप मंडियां संचालित हैं। सरकार का लक्ष्य है कि निजी मंडियों के जुड़ने से कृषि बाजारों में प्रतिस्पर्धा बढ़े और किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिले।

“बाजार में प्रतिस्पर्धा जरूरी” — विशेषज्ञ

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि निजी मंडियों की स्थापना से कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिसका सीधा फायदा किसानों को मिलेगा।
एफपीओ संचालक दयाशंकर सिंह का कहना है —

“निजी क्षेत्र की मंडियां स्थापित होने से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। किसानों को जहां बेहतर भाव और सुविधाएं मिलेंगी, वे वहीं अपनी उपज बेचेंगे। इसके साथ ही निजी मंडियों में प्रसंस्करण, शीतगृह और पैकेजिंग जैसी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी, जिससे किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी।”

“किसानों को मिलेगा ज्यादा मुनाफा” — कृषि विभाग

कृषि विभाग के प्रमुख सचिव रविंद्र ने बताया कि सरकार लगातार किसानों को उनकी उपज का अधिक मूल्य दिलाने के प्रयास कर रही है।

“सरकारी मंडियों में सुविधाओं को पहले की तुलना में बेहतर बनाया गया है। अब निजी क्षेत्र की मंडियां खुलने से किसानों को और अधिक लाभ मिलेगा। जहां सरकारी मंडियां नहीं हैं, वहां निजी मंडियों की स्थापना से किसानों को अपने घर के आसपास ही विपणन की सुविधा मिलेगी।”

भविष्य की दिशा

कृषि विपणन एवं कृषि विदेश व्यापार विभाग अन्य राज्यों में पहले से संचालित निजी मंडियों की कार्यप्रणाली का अध्ययन कर रहा है ताकि यूपी में लागू होने वाले मॉडल को और बेहतर बनाया जा सके। विभाग का मानना है कि नीतिगत सुधार, प्रतिस्पर्धा और निवेश में लचीलापन लाकर प्रदेश के कृषि ढांचे को नई दिशा दी जा सकती है।


निष्कर्ष:
उत्तर प्रदेश सरकार की यह पहल किसानों को आत्मनिर्भर बनाने, कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा देने और बाजार व्यवस्था में पारदर्शिता लाने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है। निजी किसान मंडियों के शुरू होने से न केवल राज्य का कृषि बाजार मजबूत होगा, बल्कि किसानों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।

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