लखनऊ, 25 अक्टूबर 2025:
राजधानी लखनऊ में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का चलन तेजी से बढ़ रहा है। दस वर्ष पहले तक जहां शहर में कुछ ही आईवीएफ केंद्र थे, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 60 के करीब पहुंच चुकी है। बांझपन की समस्या से जूझ रहे दंपतियों के लिए यह तकनीक संतान सुख पाने का जरिया बन रही है, लेकिन विशेषज्ञ अब इसके दुष्प्रभावों को लेकर आगाह कर रहे हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, आईवीएफ कराने वाली महिलाओं में स्तन और अंडाशय (ओवरी) कैंसर का खतरा सामान्य महिलाओं की तुलना में अधिक देखा गया है।
हार्मोनल इंजेक्शन बन रहे संभावित वजह
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) की स्तन कैंसर और इंडोक्राइन रोग विशेषज्ञ डॉ. गीतिका नंदा सिंह ने बताया कि आईवीएफ के दौरान महिलाओं को हार्मोन संबंधी दवाएं और इंजेक्शन दिए जाते हैं, जो शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हॉर्मोनों का स्तर बढ़ा देते हैं। ये हॉर्मोन कैंसर की कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
उन्होंने बताया कि केजीएमयू में ऐसे तीन मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें आईवीएफ से गर्भधारण के बाद महिलाओं को स्तन कैंसर हो गया। एक मामले में तो महिला को आईवीएफ के केवल तीन महीने बाद ही स्तन कैंसर का निदान हुआ। हालांकि, सभी मरीजों का सफल इलाज किया जा सका, लेकिन यह संकेत देता है कि इस प्रक्रिया से गुजरने वाली महिलाओं को सतर्क रहना चाहिए।
प्रसूति विभाग में भी मिले ऐसे मामले
केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने बताया कि विभाग में भी आईवीएफ से गर्भधारण करने वाली दो महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि इसी तरह एंडोक्राइनोलॉजी और इंडोक्राइन सर्जरी विभाग में भी ऐसे मरीज आते रहते हैं। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि आईवीएफ कराना खतरनाक है, लेकिन इसके बाद नियमित स्वास्थ्य जांच बेहद जरूरी है।
घबराएं नहीं, सतर्क रहें — विशेषज्ञों की राय
डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने कहा कि “आईवीएफ के बाद घबराने की जरूरत नहीं, बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है।” उन्होंने बताया कि अगर स्तन कैंसर की पहचान शुरुआती अवस्था में हो जाए, तो इसका इलाज बहुत आसान और प्रभावी होता है।
उन्होंने महिलाओं को डिजिटल मैमोग्राफी जैसी आधुनिक जांचों का सहारा लेने की सलाह दी। इस जांच से स्तन में कैंसर बनने से पहले ही उसके शुरुआती संकेतों की पहचान हो सकती है। इसलिए, आईवीएफ के बाद महिलाओं को साल में एक बार स्तन और अंडाशय कैंसर की स्क्रीनिंग जरूर करानी चाहिए।
क्यों बढ़ रहा है आईवीएफ का चलन
लखनऊ सहित देशभर के शहरी इलाकों में जीवनशैली में बदलाव और देर से विवाह के कारण बांझपन के मामले बढ़ रहे हैं। कैरियर के दबाव, असंतुलित खानपान, प्रिजर्वेटिवयुक्त भोजन, मोटापा, धूम्रपान, शराब और तनाव जैसे कारण महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं।
डॉ. गीतिका नंदा सिंह के अनुसार, “अगर महिलाएं इन आदतों से बचें और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, तो आईवीएफ की जरूरत से बचा जा सकता है।”
महंगा लेकिन बढ़ता बाजार
लखनऊ में आईवीएफ सेंटरों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत है कि बांझपन अब एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। शहर में इस समय करीब 60 आईवीएफ केंद्र संचालित हैं, जबकि 10 साल पहले इनकी संख्या कुछ ही थी। एक आईवीएफ साइकिल की शुरुआती लागत करीब डेढ़ से दो लाख रुपये होती है, जो दवाओं और अन्य प्रक्रियाओं के साथ और भी बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
आईवीएफ तकनीक उन दंपतियों के लिए वरदान साबित हो रही है, जो प्राकृतिक रूप से संतान सुख नहीं पा सकते। लेकिन इस तकनीक के दुष्प्रभावों को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आईवीएफ के बाद महिलाओं को नियमित जांच, स्वस्थ जीवनशैली और हॉर्मोन संबंधी दवाओं के प्रभावों को लेकर जागरूक रहना चाहिए।
समय रहते जांच और सतर्कता ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव का सबसे कारगर उपाय है।
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