सिद्धार्थनगर। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जहां भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था पर जीरो टॉलरेंस का दावा करती है, वहीं जिले का नगर पंचायत कपिलवस्तु इन दावों की सच्चाई पर सवाल खड़ा कर रहा है। निजी हितों की पूर्ति और राजनीतिक लाभ के लिए यहां न सिर्फ शासनादेश को दरकिनार किया गया बल्कि प्रशासन और माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों तक को ठेंगा दिखा दिया गया। यह मामला शासन और व्यवस्था की नाकामी को उजागर करता है।
नगर पंचायत बना भ्रष्टाचार का अड्डा
नगर पंचायत कपिलवस्तु का गठन होते ही यह भ्रष्टाचार का केंद्र बन गया। निकाय चुनाव के बाद आरक्षित सीट से निर्वाचित नगर अध्यक्ष श्रीमती आरती देवी तो सिर्फ नाम मात्र की चेयरपर्सन रह गईं, जबकि उनकी जगह कथित अध्यक्ष प्रतिनिधि ने नगर पंचायत की पूरी कमान अपने हाथ में ले ली। आरोप है कि उन्होंने निजी हित साधने और अवैध लाभ अर्जित करने के लिए सभी नियमों की अनदेखी करते हुए मनमानी शुरू कर दी।
सीसी रोड घोटाले से खुला पोल
ताज़ा मामला नगर पंचायत द्वारा बनाई जा रही सीसी रोड का है। यह सड़क उस जगह बननी थी जहां जनता को वास्तव में सुविधा मिलती। मगर अध्यक्ष प्रतिनिधि और उनके सहयोगियों ने इसे अपने निजी प्लॉटिंग को कीमती बनाने के लिए मनचाहे स्थान पर बना दिया। इतना ही नहीं, सड़क निर्माण के लिए किसानों की वर्षों पुरानी सिंचाई व्यवस्था और चकनाली संख्या 132 की संरक्षित जमीन तक पर अतिक्रमण कर दिया गया।
इस मनमानी से किसानों की फसल सिंचाई बाधित हो गई और जल निकासी पूरी तरह ठप हो गई। पीड़ित किसानों ने मजबूर होकर जिला प्रशासन से गुहार लगाई।
प्रशासन की रिपोर्ट भी बेअसर
किसानों की शिकायत के बाद जिला प्रशासन ने मामले की जांच करवाई और कमेटी के माध्यम से नगर पंचायत के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति भी की। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह संस्तुति कागजों में ही सीमित रह गई। कथित अध्यक्ष प्रतिनिधि और अधिशासी अधिकारी ने प्रशासन की कार्रवाई को पूरी तरह निष्प्रभावी बना दिया।
किसानों की गुहार पर न्यायालय का हस्तक्षेप
थक-हारकर किसानों ने माननीय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए नगर पंचायत को फटकार लगाई और आदेश दिया कि सीसी रोड को तत्काल हटाकर संरक्षित भूमि को पूर्व स्थिति में बहाल किया जाए। मगर अदालत का आदेश भी भ्रष्टाचार की दीवारों से टकराकर निष्प्रभावी हो गया।
शासन-प्रशासन की पोल खुली
यह पूरा प्रकरण इस बात का जीवंत उदाहरण है कि शासन और प्रशासन के दावे केवल कागजों तक ही सीमित रह गए हैं। जब न्यायालय का आदेश तक लागू नहीं हो पा रहा है, तो यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचारियों और मनमानी करने वालों पर पूरी व्यवस्था नाकाम साबित हो रही है।
सवालों के घेरे में योगी मॉडल
प्रदेश सरकार का “जीरो टॉलरेंस” मॉडल इस घटना से कठघरे में खड़ा है। यह मामला न केवल प्रशासनिक विफलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि निजी स्वार्थ में कानून, न्यायालय और शासनादेश की खुलेआम अनदेखी की जा सकती है।
स्थानीय किसानों और आम जनता का कहना है कि अगर जल्द ही शासन स्तर पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो नगर पंचायत की यह मनमानी आने वाले समय में बड़े सामाजिक और आर्थिक संकट को जन्म दे सकती है।
निष्कर्ष: सिद्धार्थनगर नगर पंचायत कपिलवस्तु का यह मामला एक आईना है, जो दिखाता है कि व्यवस्था किस कदर भ्रष्टाचार और निजी हितों की बलि चढ़ चुकी है। अब देखना होगा कि योगी सरकार इस मामले को लेकर क्या कदम उठाती है और क्या वास्तव में “जीरो टॉलरेंस” का दावा हकीकत में बदल पाता है या नहीं।
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