सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात पुलिस पर 17 वर्षीय नाबालिग के साथ यौन शोषण और कस्टडी में यातना का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह पहले हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं। मामले में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, ‘हमें आपकी परेशानी का एहसास है, लेकिन आपने पहले हाई कोर्ट क्यों नहीं गए?’
वकील ने बताया कि नाबालिग के साथ पुलिस ने बर्बरता की है। इस पर कोर्ट ने दोबारा पूछा, ‘आप आर्टिकल 226 के तहत हाई कोर्ट क्यों नहीं गए?’ वकील ने दलील दी कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से एम्स, नई दिल्ली, से मेडिकल बोर्ड बनवाकर नाबालिग के जख्मों की जांच कराने का निर्देश देने की मांग की थी। इस पर कोर्ट ने कहा,’क्या हाई कोर्ट यह आदेश नहीं दे सकता?’ वकील ने यह भी कहा कि यह सिर्फ एक मामले की बात नहीं है, बल्कि पूरे देश में नाबालिगों को पुलिस कस्टडी में उठाकर प्रताड़ित करने का बड़ा मुद्दा है। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि पहले हाई कोर्ट में जाएं और अगर वहां राहत न मिले तो वापस सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने एम्स से मेडिकल रिपोर्ट बनवाने के अनुरोध को भी ठुकरा दिया।
वकील ने यह भी चिंता जताई कि जब तक वह हाई कोर्ट पहुंचेंगे, तब तक बोटाद थाने की सीसीटीवी फुटेज नष्ट हो सकती है। इस पर कोर्ट ने कहा, ‘अगर आप समय पर हाई कोर्ट जाएंगे तो फुटेज नष्ट नहीं होगी।’ इसके बाद वकील ने याचिका वापस ले ली।
क्या है पूरा मामला?
यह याचिका नाबालिग के बहन ने दायर की थी। इसमें आरोप लगाया गया कि 18 अगस्त को गुजरात के बोटाद शहर की पुलिस ने नाबालिग को सोने और नकदी की चोरी के शक में उठाया। नाबालिग को 19 अगस्त से 28 अगस्त तक गैरकानूनी तरीके से कस्टडी में रखा गया। इस दौरान उसे पुलिस स्टेशन में बेरहमी से पीटा गया और यौन शोषण किया गया। पुलिस ने नाबालिग को न तो 24 घंटे के भीतर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड या मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया और न ही मेडिकल जांच कराई।