श्रावस्ती ज़िले में मदरसों को लेकर हुए प्रशासनिक फैसले पर अब बड़ा मोड़ आ गया है।
कुछ दिन पहले ज़िला प्रशासन ने लगभग 30 मदरसों को अचानक बंद करने का आदेश दे दिया था। प्रशासन का आरोप था कि ये मदरसे मानक नियमों के अनुरूप नहीं चल रहे थे और यहां पढ़ाई के नाम पर गड़बड़ियां हो रही थीं। लेकिन खास बात ये रही कि प्रशासन ने ये कार्रवाई बिना संबंधित मदरसा प्रबंधकों या संस्थाओं को सुनवाई का मौका दिए ही कर दी।
इस कार्रवाई के खिलाफ कई मदरसा प्रबंधकों ने हाईकोर्ट की शरण ली। और अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जिला प्रशासन की कार्रवाई को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी भी संस्था को बिना सुनवाई और बिना पर्याप्त कारण बताए बंद करना क़ानून के खिलाफ है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ज़िला प्रशासन को निर्देश दिया है कि जिन 30 मदरसों को बंद किया गया था, उन्हें तुरंत प्रभाव से खोला जाए।
इस फैसले के बाद अब प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन दोनों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है। सवाल ये है कि –
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क्या प्रदेश सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी?
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या फिर हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए सभी मदरसों को फिर से शुरू करने का आदेश देगी?
इस बीच, मदरसा प्रबंधकों और स्थानीय समुदाय ने हाईकोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि प्रशासन ने जल्दबाज़ी में कदम उठाया था, जिससे न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई, बल्कि संस्थानों की छवि पर भी सवाल खड़े हुए।
दूसरी तरफ, ज़िला प्रशासन इस पूरे मामले पर आधिकारिक बयान देने से बच रहा है। अधिकारियों का कहना है कि उन्हें हाईकोर्ट का आदेश मिल चुका है और वे क़ानूनी राय लेकर आगे की कार्रवाई करेंगे।
कुल मिलाकर, यह मामला अब सिर्फ शिक्षा का नहीं, बल्कि क़ानूनी अधिकारों और प्रशासनिक कार्यप्रणाली का भी बन गया है। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि “बिना सुनवाई किसी संस्था पर ताला नहीं लगाया जा सकता।”
अब सबकी निगाहें प्रदेश सरकार और श्रावस्ती प्रशासन पर टिकी हैं कि वे इस मामले में अगला कदम क्या उठाते हैं।
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