जिले के कमालगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही उजागर हुई है। यहाँ एक गंभीर रूप से घायल युवक को न तो समय पर इलाज मिला और न ही एंबुलेंस सेवा। नतीजा यह रहा कि मरीज पूरे 7 घंटे तक अस्पताल में तड़पता रहा, लेकिन जिम्मेदार बेपरवाह बने रहे।
घटना ऐसे हुई
आज सुबह करीब 8 बजे कस्बे का एक युवक छत से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गया। परिजन किसी तरह ई-रिक्शा से घायल को कमालगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुँचे। उम्मीद थी कि यहाँ तुरंत इलाज मिलेगा और मरीज की जान बच सकेगी, लेकिन हुआ इसके उलट।
डॉक्टरों की लापरवाही
परिजनों का आरोप है कि गंभीर हालत में लाए गए मरीज को डॉक्टरों ने प्राथमिक इलाज देने के बाद भी तुरंत रेफर नहीं किया। हैरानी की बात यह है कि घायल को दोपहर करीब 3 बजे जाकर रेफर किया गया, यानी पूरे 7 घंटे बाद। इस दौरान मरीज और उसका परिवार अस्पताल परिसर में परेशान होता रहा।
एंबुलेंस सेवा फेल
इतना ही नहीं, एंबुलेंस सेवा भी इस लापरवाही में शामिल रही। परिजनों का कहना है कि उन्होंने कई बार एंबुलेंस के लिए गुहार लगाई, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। मजबूर होकर उन्हें घायल को लेकर इधर-उधर भटकना पड़ा।
घायल के भतीजे ने आरोप लगाया—
“हम सुबह से एंबुलेंस के लिए अधिकारियों से मिन्नतें कर रहे थे, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अगर समय पर एंबुलेंस और इलाज मिल जाता तो स्थिति बेहतर हो सकती थी।”
ग्रामीणों में गुस्सा
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि कमालगंज सीएचसी में ऐसी लापरवाही आम बात है।
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डॉक्टर अक्सर देर से मरीजों की जांच करते हैं।
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एंबुलेंस समय पर उपलब्ध नहीं होती।
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कई बार मरीजों को जीवनरक्षक सुविधाएं तक नहीं मिलतीं।
ग्रामीणों का सवाल है कि जब एंबुलेंस सेवा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, तो फिर आम आदमी को इन सेवाओं का लाभ क्यों नहीं मिल पाता?
जिम्मेदारों पर सवाल
इस पूरे मामले ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं—
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डॉक्टरों ने गंभीर मरीज को सुबह ही तुरंत रेफर क्यों नहीं किया?
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एंबुलेंस समय पर क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई?
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मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ का जिम्मेदार कौन है?
कार्रवाई होगी या नहीं?
कमालगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि स्वास्थ्य सेवाओं की हालत जमीनी स्तर पर बेहद खराब है। अब देखना यह होगा कि जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होती है या मरीज यूँ ही अस्पतालों में तड़पते रहेंगे।
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