वाराणसी: कोर्ट में बहस के दौरान मुख्तार की ओर से कहा गया कि वह अपने वालिद के समय से ज्ञानवापी परिसर में जुमे की नमाज व अन्य धार्मिक क्रियाकलापों में शामिल होता रहा है। उसे वहां इबादत करने का कानूनी रूप से मौलिक अधिकार हासिल है।
सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) प्रशांत कुमार की अदालत ने वर्ष 1991 के प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ के वाद में मुख्तार अहमद अंसारी की ओर से पक्षकार बनने की मांग खारिज कर दी। इस मामले में अगली सुनवाई की तिथि चार मई नियत की गई है।
अदालत ने कहा कि इस वाद में पक्षकार बनने के लिए 30 वर्ष के विलंब से अर्जी दी गई है। उसका कारण भी स्पष्ट नहीं किया गया है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि पिछले 30 वर्षों में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुसलमानों के हित की रक्षा ठीक ढंग से नहीं की।
लोहता क्षेत्र निवासी मुख्तार अहमद अंसारी ने एक साल पहले इस मामले में पक्षकार बनाने के लिए कोर्ट में अर्जी दी थी।
पक्षकार बनाने की अर्जी का विरोध करते हुए लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने अपनी दलील में राम जन्मभूमि के निर्णय का हवाला दिया। बताया कि फैसले में कहा गया है कि एक ही स्थान पर दो प्रकृति की चीजें नहीं रह सकती है। वह स्थान या तो मंदिर होगा या मस्जिद होगा। उसी प्रकार जहां मस्जिद होगी, वहां कब्र नहीं होगी। जहां कब्र होगी, वहां मस्जिद नहीं रहेगी। मुख्तार का घर लोहता में है। वह अपने पिता के साथ ज्ञानवापी जाते थे। इस बीच काफी संख्या में मस्जिद हैं, वहां नमाज नहीं पढ़ते थे। सीधे वहां जाते थे, जो सरासर गलत है।
रस्तोगी ने 1936 में दीन मोहम्मद केस का जिक्र करते हुए बताया कि उसमें भी कहा गया है कि 1906 और उसके पहले से कभी ज्ञानवापी में फातिया नहीं पढ़ी गई। जिसे कब्र कहते हैं, उसमें देवताओं की मूर्तियां हैं। इसलिए मुख्तार की अर्जी बेवजह मुकदमे को भ्रमित करने, कोर्ट का समय बर्बाद करने और मूल मुद्दे से भटकाने के लिए दी गई है। इसलिए पक्षकार बनने की अर्जी निरस्त करते हुए आगे की सुनवाई जारी रखी जाए।
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