नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को दिल्ली स्थित डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रधानमंत्री ने विशेष रूप से डिजाइन किए गए एक स्मारक डाक टिकट और 100 रुपये के स्मारक सिक्के को राष्ट्र को समर्पित किया। इस कार्यक्रम की शुरुआत विजयदशमी से हुई है और यह आगामी 2026 की विजयदशमी तक पूरे देशभर में विविध आयोजनों के माध्यम से मनाया जाएगा।
पीएम मोदी का संबोधन
कार्यक्रम में उपस्थित स्वयंसेवकों और गणमान्य नागरिकों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा,
“यह हमारा सौभाग्य है कि हमें संघ जैसे संगठन का शताब्दी वर्ष देखने का अवसर मिला है। आरएसएस ने बीते सौ वर्षों में समाज, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण में जो योगदान दिया है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा।”
उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं दीं।
संघ की स्थापना और उद्देश्य
आरएसएस की स्थापना वर्ष 1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा नागपुर (महाराष्ट्र) में एक स्वयंसेवक-आधारित संगठन के रूप में की गई थी। संघ का उद्देश्य नागरिकों में सांस्कृतिक जागरूकता, अनुशासन, सेवा और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना विकसित करना है।
पिछली एक शताब्दी में, आरएसएस ने अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में गहरा प्रभाव छोड़ा है।
शिक्षा, सेवा और सामाजिक कार्यों में योगदान
संघ और इसके स्वयंसेवकों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
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प्राकृतिक आपदाओं — बाढ़, भूकंप और चक्रवात — के समय आरएसएस कार्यकर्ता हमेशा राहत और पुनर्वास कार्यों में सक्रिय रहे हैं।
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शिक्षा के क्षेत्र में संघ ने हजारों विद्यालय और शिक्षण संस्थान खड़े किए, जिनका लक्ष्य समाज के वंचित तबके को अवसर उपलब्ध कराना रहा है।
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महिला सशक्तिकरण, किसान कल्याण और युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण पर भी संघ और इसके अनुषंगी संगठनों ने लगातार कार्य किया है।
सांस्कृतिक और राष्ट्रीय योगदान
आरएसएस का मानना है कि भारत की सांस्कृतिक परंपराएं और मूल्य ही राष्ट्र की शक्ति का आधार हैं।
इसी सोच के तहत संघ ने समाज में राष्ट्रीय एकता, सेवा भाव और आत्मनिर्भरता की भावना को मजबूत किया है।
आज संघ से जुड़े सैकड़ों संगठन अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, जो ग्रामीण विकास से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण तक सक्रिय हैं।
शताब्दी समारोह का महत्व
इस शताब्दी वर्ष को केवल संघ की उपलब्धियों का जश्न नहीं माना जा रहा, बल्कि इसे भारत की सांस्कृतिक यात्रा और राष्ट्र निर्माण में संगठन के योगदान के सम्मान के रूप में देखा जा रहा है।
देशभर में आने वाले दो वर्षों तक विभिन्न आयोजन, संगोष्ठी, सेवा कार्यक्रम और सांस्कृतिक गतिविधियाँ आयोजित होंगी, जो इस यात्रा को और अधिक जीवंत बनाएंगी।
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