पूर्व आईपीएस ने कहा कि ‘यह सच है कि हम 7/11 ट्रेन बम विस्फोटों के 190 पीड़ितों, मालेगांव पीड़ितों को न्याय नहीं दिला पाए, या दाभोलकर हत्या के असली अपराधियों का पता नहीं लगा पाए। कई अन्य कारकों के साथ, राजनीतिक हस्तक्षेप भी एक प्रमुख कारण है।’
पूर्व आईपीएस अधिकारी मीरान बोरवणकर ने कहा है कि राजनीतिक हस्तक्षेप भी एक वजह रही, जिनके चलते मालेगांव और 7/11 विस्फोटों के पीड़ितों और नरेंद्र दाभोलकर के परिजनों को पूरा न्याय नहीं मिल सका। पुणे में डॉ. दाभोलकर की 12वीं पुण्यतिथि पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी ने दावा किया कि उन्हें एक धमकी भरा ईमेल मिला था जिसमें कार्यक्रम में उनकी भागीदारी पर सवाल उठाया गया था।
उन्होंने कहा कि ‘इसी तरह, रोहिणी सालियान, जो एक ईमानदार, प्रतिबद्ध और जानकार वकील थीं, उन्हें एनआईए द्वारा मालेगांव विस्फोट मामले में अलग कर दिया गया था। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन पर केस में नरम रुख अपनाने का दबाव था। पूर्व आईपीएस अधिकारी ने दाभोलकर हत्या मामले में पुणे की एक अदालत की टिप्पणियों का भी हवाला दिया। बोरवणकर ने कहा ‘दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा और तीन अन्य को बरी करते हुए, न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि अगर तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया, तो मुख्य साज़िशकर्ता कौन था और डॉ. दाभोलकर की हत्या की साजिश किसने रची थी? न तो सीबीआई और न ही पुलिस मास्टरमाइंड तक पहुंच पाई। क्या यह नाकामी थी, या जानबूझकर की गई थी, या किसी शक्तिशाली व्यक्ति का कोई प्रभाव था?
उन्होंने कहा कि अगर राजनेता दाभोलकर हत्या और मालेगांव विस्फोट जैसे मामलों में हस्तक्षेप करते हैं और पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता है, तो इससे बुरा और क्या हो सकता है? पूर्व आईपीएस ने कहा कि ‘यह सच है कि हम 7/11 ट्रेन बम विस्फोटों के 190 पीड़ितों, मालेगांव पीड़ितों को न्याय नहीं दिला पाए, या दाभोलकर हत्या के असली अपराधियों का पता नहीं लगा पाए। कई अन्य कारकों के साथ, राजनीतिक हस्तक्षेप भी एक प्रमुख कारण है।’
20 अगस्त, 2013 को पुणे में ओंकारेश्वर मंदिर के पास एक पुल पर सुबह की सैर के दौरान दाभोलकर की दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। वहीं मालेगांव विस्फोट में छह लोगों की जान जाने के लगभग 17 साल बाद, 31 जुलाई को मुंबई की एक विशेष अदालत ने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 21 जुलाई को 2006 के 7/11 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। इस विस्फोट में 180 से ज़्यादा लोग मारे गए थे। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है।
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