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विधवा महिला ललिता देवी को नहीं मिला न्याय, दर–दर भटक रही पीड़िता

लोकेशन — कन्नौज

संवाददाता — अंकित श्रीवास्तव

कन्नौज। न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखकर अपने पति की मौत का सच उजागर करने में जुटी ताल पार निवासी विधवा ललिता देवी अब पूरी तरह थक चुकी हैं। कई महीनों से चौखटों के चक्कर काट रही ललिता देवी का कहना है कि आज तक न तो उनकी बात सुनी गई और न ही दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई हुई। पीड़िता का आरोप है कि उनके पति की हत्या ससुराल पक्ष के लोगों ने संपत्ति हड़पने की नीयत से की थी, लेकिन आज तक मामले में न्याय की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।

थाना तालग्राम क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ताल पार गांव की रहने वाली ललिता देवी बताती हैं कि पति की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद उन्होंने तत्काल चौकी और थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद वे कई बार खुद अधिकारियों से मिलने गईं—कभी चौकी इंचार्ज, कभी थाना प्रभारी, तो कभी तहसील और जिला प्रशासन तक अपनी गुहार पहुंचाई। लेकिन अफसरों और कर्मचारियों के भरोसे दिलाने के बावजूद अभी तक किसी ठोस कार्रवाई का न होना उनके लिए सबसे बड़ा दुख है।

ललिता देवी ने रोते हुए बताया कि ससुराल पक्ष के लोग लगातार उन्हें धमकाते रहते हैं और मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाते हैं। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी और महीनों से न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं। उनका कहना है कि अगर प्रशासन उनकी सुनवाई कर ले, तो उनके पति की मौत की सच्चाई सामने आ सकती है और दोषियों को सजा मिल सकती है।

पीड़िता ने बताया कि केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार जहां अपराध और भूमाफियाओं के खिलाफ “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर काम करने का दावा करती है, वहीं जमीनी स्तर पर स्थिति बिल्कुल अलग दिखाई देती है। गरीब और असहाय लोगों की सुनवाई न होने से सरकारी नीतियों की कार्यक्षमता पर सवाल खड़े होते हैं।

विधवा का कहना है कि वह अब तक न जाने कितनी बार तहसील व जिला प्रशासन के अधिकारियों के सामने अपनी फरियाद रख चुकी हैं, मगर हर बार उन्हें केवल आश्वासन ही मिला। उनके पति की हत्या के मामले में न तो सच्चाई सामने आ सकी और न ही दोषियों को डर।

ललिता देवी ने शासन-प्रशासन से हाथ जोड़कर जल्दी कार्रवाई करने और उन्हें न्याय दिलाने की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्हें अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बड़ा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ सकता है।

पीड़िता की बेबसी और न्याय के लिए उनकी लड़ाई ने गांव के कई लोगों का ध्यान भी खींचा है। ग्रामीणों का कहना है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन को तुरंत हस्तक्षेप करते हुए निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करनी चाहिए।

ललिता देवी के संघर्ष से एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या वास्तव में गरीब और कमजोर लोगों के लिए न्याय व्यवस्था तक पहुँचना इतना कठिन हो चुका है कि उन्हें महीनों तक दर–दर की ठोकरें खानी पड़ें?

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