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Disabled Drivers Protest : मथुरा में विकलांग ई-रिक्शा चालकों का धरना, सरकार से राहत और सम्मान की मांग

मथुरा से बड़ी खबर: पोतरा कुंड पर विकलांग ई-रिक्शा चालकों का धरना — योगी सरकार से विशेष राहत और सम्मानजनक जीवन की मांग

रिपोर्ट – मुरली मनोहर सिंह, मथुरा

मथुरा। श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पावन क्षेत्र में स्थित पोतरा कुंड बुधवार को एक भावनात्मक और संवेदनशील धरना प्रदर्शन का साक्षी बना। यहां दर्जनों विकलांग ई-रिक्शा चालक अपने अधिकारों और जीवन-यापन की मजबूरी को लेकर एकत्र हुए। इन चालकों ने शांतिपूर्ण तरीके से धरना देते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से विशेष राहत, अनुमति और आर्थिक सहयोग की मांग की।

धरने में शामिल विकलांग चालकों ने कहा कि वे शारीरिक रूप से अक्षम हैं — किसी के हाथ कमजोर हैं, किसी के पैर सही से काम नहीं करते, फिर भी वे भीख मांगने के बजाय मेहनत कर अपने परिवार का पालन-पोषण करना चाहते हैं। उनका कहना था कि सरकार भले ही कुछ सुविधाएँ देती है, लेकिन स्थानीय प्रशासन और यातायात विभाग की मनमानी उनके लिए बड़ी परेशानी बन गई है।

“हम भी समाज का हिस्सा हैं, हमें भी जीने का हक है”

धरने में शामिल ई-रिक्शा चालक रामसिंह, धर्मेन्द्र, राजू, मोनू, हरीश और अन्य लोगों ने कहा कि वे ईमानदारी से अपने रिक्शे चलाते हैं, किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। लेकिन कई बार स्थानीय पुलिस या प्रशासन द्वारा ई-रिक्शा चलाने से रोक दिया जाता है, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ता है।

उन्होंने बताया कि वे न तो अपनी गाड़ी जल्दी मोड़ सकते हैं, न ही उतरकर धक्का दे सकते हैं। शरीर के सीमित उपयोग के बावजूद वे हर दिन संघर्ष कर दो वक्त की रोटी कमाते हैं। लेकिन जब बिना कारण उन्हें रास्ते में रोक दिया जाता है या चालान कर दिया जाता है, तो उनके सामने परिवार पालने का संकट खड़ा हो जाता है।

सरकार से उठाई तीन प्रमुख मांगें

  1. राज्यभर में विकलांग ई-रिक्शा चालकों को स्वतंत्र रूप से चलाने की अनुमति मिले, ताकि वे कहीं भी अपना वाहन चला सकें और जीविका चला सकें।

  2. सरकार द्वारा ₹3000 मासिक आर्थिक सहायता दी जाए, जिससे वे अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और घर का खर्च चला सकें।

  3. स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिए जाएं कि ऐसे चालकों के साथ संवेदनशील व्यवहार करें, और उनके विरुद्ध अनावश्यक कार्रवाई न की जाए।

धरने के दौरान कुछ चालकों ने कहा कि जब वे परमिट या रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी करते हैं, तब भी उनसे कई बार अवैध वसूली या बेवजह चालान की धमकी दी जाती है। विकलांग चालकों ने भावुक होकर कहा कि “हम भी मेहनतकश हैं, बस शरीर साथ नहीं देता, पर हिम्मत नहीं हारी। सरकार अगर थोड़ी मदद करे तो हम अपने बच्चों को भी सम्मान के साथ पढ़ा सकते हैं।”

धरने के बाद विकलांग प्रकोष्ठ के पदाधिकारी के पास पहुंचे चालक

धरना प्रदर्शन समाप्त होने के बाद सभी चालक एक साथ परिक्रमा मार्ग स्थित महाविद्या कुसुम वाटिका रोड पहुंचे, जहां उन्होंने विकलांग प्रकोष्ठ मथुरा के पदाधिकारी सुनील कौशिक से मुलाकात की। वहां चालकों ने अपनी पूरी आपबीती सुनाई — किस तरह उन्हें ई-रिक्शा चलाने से रोका जाता है, किस प्रकार उनके साथ प्रशासनिक उदासीनता बरती जाती है, और किस तरह वे अपमान झेलते हुए भी अपने बच्चों का पेट पालते हैं।

सुनील कौशिक ने दिया आश्वासन – “आपकी लड़ाई हम लड़ेंगे”

विकलांग प्रकोष्ठ के पदाधिकारी सुनील कौशिक ने चालकों को विश्वास दिलाया कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से सरकार तक पहुंचाएंगे। उन्होंने कहा कि इन चालकों की मांगें पूरी तरह से जायज हैं। “जो लोग शारीरिक रूप से विकलांग होने के बावजूद खुद मेहनत कर रहे हैं, वे समाज के लिए प्रेरणा हैं। ऐसे लोगों को समर्थन और सहयोग मिलना चाहिए, न कि परेशान किया जाना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “अगर जरूरत पड़ी तो मैं स्वयं इस मामले को जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री कार्यालय तक ले जाऊंगा, ताकि विकलांग चालकों को उनका हक मिल सके। यह केवल रोजी-रोटी का सवाल नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार का मुद्दा है।”

धरने में उठी मानवीय संवेदना की पुकार

धरने के दौरान कई स्थानीय नागरिक भी मौके पर पहुंचे और विकलांग चालकों का समर्थन किया। लोगों ने कहा कि जो व्यक्ति अपंग होते हुए भी काम करना चाहता है, उसे रोकना समाज की असंवेदनशीलता को दर्शाता है। मथुरा जैसे धार्मिक और पर्यटन स्थल में हजारों श्रद्धालु आते हैं — ऐसे में अगर विकलांग चालकों को रोजगार के साधन से वंचित किया जाएगा तो यह मानवता के खिलाफ होगा।

धरने में उपस्थित लोगों ने एक स्वर में कहा कि सरकार को चाहिए कि वह ऐसे श्रमिकों के लिए “विशेष विकलांग परिवहन कार्ड” जारी करे, जिससे उन्हें बिना रुकावट काम करने की अनुमति मिले और उन्हें किसी भी स्तर पर अपमान या उत्पीड़न न झेलना पड़े।

धरने के अंत में सभी चालकों ने हाथ उठाकर यह संकल्प लिया कि वे किसी से टकराव नहीं करेंगे, लेकिन अपने अधिकार और सम्मान के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष जारी रखेंगे। उनका कहना था कि वे भी देश के नागरिक हैं और ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति में उनका भी बराबर हिस्सा होना चाहिए।

“विकलांग चालक किसी पर बोझ नहीं हैं, वे अपने बलबूते पर मेहनत कर रहे हैं। सरकार से मेरी अपील है कि उनकी मांगों पर तुरंत संज्ञान ले और उन्हें राहत पहुंचाए। यह केवल मदद नहीं, बल्कि न्याय का सवाल है।”

पोतरा कुंड पर हुआ यह धरना सिर्फ कुछ विकलांग चालकों का विरोध नहीं था, बल्कि यह आवाज थी सम्मान, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय की। मथुरा की पवित्र भूमि से उठी यह पुकार अब शासन-प्रशासन तक पहुंचे, यही इन चालकों की आशा है।

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