बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने आप में कई मायनों में खास और दिलचस्प होने वाला है। इस बार का चुनाव केवल नेताओं और दलों के बीच की टक्कर नहीं बल्कि चुनावी रणनीतियों, सामाजिक समीकरण और नई उम्मीदों की जंग भी है। जहाँ एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करिश्मा है, वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का सामाजिक न्याय और रोजगार का एजेंडा मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच प्रशांत किशोर ने अपनी नई पार्टी जनसुराज के माध्यम से बिहार में एक नया विकल्प प्रस्तुत किया है।
चुनाव आयोग ने राज्य की अंतिम मतदाता सूची जारी कर दी है। सात करोड़ चालीस लाख मतदाता इस बार अपनी पसंद के हिसाब से बिहार का भविष्य तय करेंगे। चुनाव की संभावना दीवाली और छठ के बाद जताई जा रही है।
एनडीए और महागठबंधन की तैयारियाँ
बिहार के दो बड़े राजनीतिक खेमे – एनडीए और इंडिया महागठबंधन – चुनावी तैयारियों में पूरी तरह जुट चुके हैं। एनडीए में जद(यू), भाजपा, चिराग पासवान की एलोजपा, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के छोटे दल शामिल हैं। पिछले चुनाव में जद(यू) की स्थिति कमजोर हुई थी, लेकिन इस बार एनडीए में एकजुटता दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की रणनीति के तहत भाजपा अपने संगठन बल, केंद्र सरकार का तंत्र और आरएसएस के सेवाबलों का समर्थन लेकर एनडीए को मजबूत स्थिति में पेश कर रही है।
एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर हलचल अभी भी जारी है। चिराग पासवान 40 सीटों की मांग कर रहे हैं, जबकि मांझी 20 और उपेंद्र कुशवाहा 10 सीटों के हकदार हैं। जद(यू) भाजपा से थोड़ा ज्यादा सीटें चाहती है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लगभग 200-203 सीटें भाजपा और जद(यू) के हिस्से में आएंगी, जबकि शेष अन्य सहयोगी दलों में बंटी रहेंगी।
महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, वाम दल और वीआईपी शामिल हैं। इसके नेता तेजस्वी यादव हैं, जिन्हें भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया गया है। राजद का यादव-मुस्लिम वोट बैंक मजबूत है, जबकि कांग्रेस अति पिछड़े और दलित वर्ग को जोड़कर अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने हाल ही में अति पिछड़ों के लिए विशेष चुनाव घोषणा पत्र जारी किया है, जिसमें कई बड़े वादे शामिल हैं, जैसे:
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अति पिछड़ा अत्याचार निवारण अधिनियम
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पंचायतों और नगर निकायों में 20-30% आरक्षण
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सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण
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सरकारी ठेकों में पिछड़े, अति पिछड़े और अनुसूचित जातियों के लिए 50% आरक्षण
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भूमिहीनों को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भूमि देने का प्रावधान
ये वादे महागठबंधन की चुनावी रणनीति को नई दिशा दे सकते हैं।
चुनावी मुद्दे और मतदाताओं की प्राथमिकताएँ
बिहार चुनाव 2025 में प्रमुख मुद्दों में शामिल हैं:
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बेरोजगारी और पलायन
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कानून-व्यवस्था और अपराध
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नीतीश सरकार की योजनाओं जैसे हर परिवार की महिला खाता में ₹10,000 की राशि
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वोट अधिकार यात्रा और एसआईआर (मतदाता सूची की सफाई)
एनडीए को अपनी ताकत भाजपा के सवर्ण, जद(यू) के अति पिछड़े और अन्य सहयोगी दलों के मताधार में दिख रही है। वहीं महागठबंधन को यादव-मुस्लिम, अति पिछड़े और दलित वर्ग का भरोसा हासिल करने पर ध्यान है।
नया कारक: प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी
इस चुनाव में सबसे नया और अनिश्चित फैक्टर प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी है। पीके ने पिछले दो वर्षों से बिहार में राजनीतिक सक्रियता बढ़ाई और युवाओं, महिलाओं और विभिन्न जातियों के मतदाताओं के बीच नई उम्मीद जगाई है।
हालांकि उनका सामाजिक जनाधार लालू परिवार और नीतीश कुमार जितना मजबूत नहीं है, फिर भी उनका प्रभाव अनदेखा नहीं किया जा सकता। जनसुराज पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और अभी तक किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है।
इसके अलावा बसपा और एआईएमआईएम भी चुनाव मैदान में हैं। बसपा मुख्यतः भोजपुर, रोहतास और बक्सर जिलों में उम्मीदवार उतारेगी, जबकि ओवैसी की पार्टी सीमांचल में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुकाबला करेगी।
निष्कर्ष
बिहार में इस बार का चुनाव केवल दो बड़े गठबंधनों का मुकाबला नहीं है। यह मोदी-नीतीश का करिश्मा, राहुल-तेजस्वी का सामाजिक न्याय, प्रशांत किशोर की नई उम्मीद और सरकारी योजनाओं का लाभ के बीच जनता का फैसला होगा। विशेषकर अति पिछड़ों और दलित वर्ग का रुझान नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
बिहार के मतदाता इस बार इतिहास रचने वाले हैं। कौन सी गठबंधन को फायदा होगा, कौन सी पार्टी का दावा मजबूत होगा, यह अगले पांच साल के बिहार के भविष्य को तय करेगा।
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