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जमानत के बाद भी किशोर को हिरासत में रखने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

आरोपी किशोर की बुआ ने बीते हफ्ते हाईकोर्ट में याचिका दायर कर किशोर की रिहाई की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि किशोर को अवैध तरीके से हिरासत में रखा गया है और उसे तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।

पुणे कार हादसे से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि क्या आरोपी नाबालिग को जमानत के बाद भी हिरासत में रखना कारावास नहीं है। बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने कहा कि पीड़ित परिवार हादसे से सदमे में हैं, लेकिन आरोपी किशोर भी सदमे में है। उसके दिमाग पर इसका असर हुआ होगा। हाईकोर्ट की पीठ ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और अब 25 जून को फैसला सुनाएगी।

आरोपी किशोर की बुआ ने दायर की है याचिका

आरोपी किशोर की बुआ ने बीते हफ्ते हाईकोर्ट में याचिका दायर कर किशोर की रिहाई की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि किशोर को अवैध तरीके से हिरासत में रखा गया है और उसे तुरंत रिहा किया जाना चाहिए। याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने माना कि पुलिस ने भी अभी तक आरोपी किशोर की जमानत को रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट में अपील दायर नहीं की है। इसके बजाय पुलिस ने किशोर न्याय बोर्ड में आवेदन देकर जमानत आदेश में संशोधन कराया और किशोर को हिरासत में रखा। उल्लेखनीय है कि 19 मई की सुबह आरोपी किशोर ने कथित तौर पर नशे की हालत में बहुत तेज गति से पोर्श कार चलाते हुए पुणे के कल्याणी नगर में एक बाइक को टक्कर मार दी थी। इस टक्कर के चलते बाइक सवार दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गई थी।

17 वर्षीय किशोर को उसी दिन किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) द्वारा निबंध लिखवाकर जमानत पर रिहा कर दिया था और उसे अपने परिजनों की देखरेख में रहने का आदेश दिया गया था। हालांकि किशोर की तुरंत रिहाई पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा, जिसके बाद पुलिस ने दबाव के चलते किशोर न्याय बोर्ड के जमानत आदेश में संशोधन कराया। जिसके बाद बोर्ड ने 22 मई को लड़के को हिरासत में लेने और उसे निगरानी गृह में भेजने का आदेश दिया।।

याचिकाकर्ता के वकील ने दीं ये दलीलें

वरिष्ठ वकील आबाद पोंडा ने तर्क दिया कि लड़के के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया था। उन्होंने कहा ‘एक स्वतंत्र नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचला गया है।’ पोंडा ने कहा, ‘क्या किसी बच्चे को तब हिरासत में लिया जा सकता है, जब उसे जमानत मिल गई हो और जमानत आदेश लागू हो।’ उन्होंने कहा कि कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत जमानत आदेश की समीक्षा की मांग की जा सके और उसे पारित किया जा सके। पोंडा ने कहा, ‘महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम और आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गंभीर अपराधों में भी ऐसी चीजें नहीं की जाती हैं।’ उन्होंने पूछा कि पुलिस एक किशोर के मामले में ऐसा कैसे कर सकती है। याचिका में दावा किया कि सार्वजनिक हंगामे और ‘राजनीतिक एजेंडे’ के कारण पुलिस जांच के सही तरीके से भटक गई है, जिससे किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम का पूरा उद्देश्य ही विफल हो गया। किशोर फिलहाल 25 जून तक निगरानी गृह में है।

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