नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में पंचायत और शहरी निकाय चुनाव तुरंत करवाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि, जिन निकायों के चुनाव लंबित हैं, राज्य चुनाव आयोग 2 हफ्ते में उनके चुनाव की अधिसूचना जारी करे. कोर्ट ने साफ किया है कि, ओबीसी आरक्षण के लिए तय शर्तों को पूरा किए बिना आरक्षण नहीं मिल सकता. कोर्ट ने यह भी कहा है कि, सीटों के नए सिरे से परिसीमन को आधार बना कर चुनाव को नहीं टाला जा सकता.
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देश के सभी राज्यों पर लागू होता है आदेश
4 मई को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के लिए भी ऐसा ही आदेश दिया था. जस्टिस एएम खानविलकर, अभय एस ओका और सीटी रविकुमार की बेंच ने साफ किया है कि निकाय चुनाव न टालने के आदेश सिर्फ महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश के लिए नहीं है, ये बाकी राज्यों पर भी लागू है. खाली हो रही सीटों पर 5 साल में चुनाव करवाना संवैधानिक ज़रूरत है. इसे किसी भी वजह से टाला नहीं जाना चाहिए.
नौकरी, शिक्षा और स्थानीय निकाय में आरक्षण अलग-अलग
इंदौर के रहने वाले सुरेश महाजन की याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि स्थानीय निकाय में ओबीसी आरक्षण, नौकरी और उच्च शिक्षा के आरक्षण से अलग है. इसे लागू करने के लिए 3 पूर्वनिर्धारित शर्तों को पूरा करना ज़रूरी है. इसके तहत एक आयोग का गठन कर आबादी का प्रतिशत, पिछड़ेपन का आंकड़ा और आरक्षण के असर जैसी बातों का अध्ययन ज़रूरी है.
कुल आरक्षण का प्रतिशत 50 से अधिक न हो, यह भी सुनिश्चित करना ज़रूरी है. सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश सरकार ने कोर्ट से ट्रिपल टेस्ट की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए समय देने का अनुरोध किया था. लेकिन कोर्ट ने कहा कि 321 शहरी और 23263 ग्रामीण निकायों के चुनाव 2019 से लंबित हैं. इन्हें अब टाला नहीं है सकता.
चुनाव रोकना लोकतंत्र की भावना के विपरीत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साल 2006 में किशन सिंह तोमर बनाम अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन मामले में साफ किया जा चुका है कि 5 साल में शहरी निकाय चुनाव होना चाहिए. संविधान के अनुच्छेद 243ई (5 साल में पंचायत चुनाव) और 243यू (5 साल में शहरी निकाय चुनाव) में भी यह अनिवार्यता रखी गई है. अपरिहार्य स्थितियों में 6 महीने तक चुनाव रोकने की अनुमति है. लेकिन अनिश्चितत काल तक लोगों को प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रखा जा सकता.
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कोर्ट ने इसे लोकतंत्र की भावना के विपरीत बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण के लिए आंदोलन कर रही पार्टियों को सुझाव देते हुए कहा कि फिलहाल उन्हें सामान्य सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतारने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि राज्य चुनाव आयोग न सिर्फ लंबित चुनाव तुरंत करवाए, बल्कि भविष्य में जहां निकाय का 5 साल का समय पूरा हो रहा हो, वहां परिसीमन वगैरह के नाम पर चुनाव न टाले.