नई दिल्ली/कुआलालंपुर।
भारत और अमेरिका ने रक्षा सहयोग को नई ऊंचाई पर ले जाते हुए 10 साल के लिए एक “डिफेंस कोऑपरेशन फ्रेमवर्क एग्रीमेंट” पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों देशों के बीच हुआ यह समझौता न केवल रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करेगा, बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा को भी मजबूती देगा।
अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ और भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कुआलालंपुर में आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन के दौरान इस ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते के बाद अमेरिकी मंत्री ने सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करते हुए लिखा,
“भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंध इतने मजबूत पहले कभी नहीं रहे। यह समझौता क्षेत्रीय स्थिरता को सुदृढ़ करेगा और आने वाले वर्षों में दोनों देशों के लिए नए अवसर खोलेगा।”
पिछली यात्रा टैरिफ विवाद के चलते रद्द हुई थी
राजनाथ सिंह की अमेरिका यात्रा की योजना अगस्त में बनाई गई थी, जब वे वाशिंगटन में अमेरिकी रक्षा मंत्री से मिलने वाले थे। लेकिन उस समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय आयात पर टैरिफ दोगुना कर 50 प्रतिशत कर दिया था। इससे दोनों देशों के रिश्ते दशकों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे और राजनाथ सिंह की यात्रा रद्द करनी पड़ी थी।
अब, कुछ महीनों बाद, कुआलालंपुर में हुई मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने रिश्तों में आई खटास को भुलाकर भविष्य की दिशा तय की। इस दौरान दोनों पक्षों ने रक्षा उत्पादन, तकनीकी साझेदारी, सैन्य प्रशिक्षण, और खुफिया सहयोग जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।
संबंध सुधार की दिशा में बड़ा कदम
हाल ही में अमेरिका ने रूस की दो प्रमुख तेल निर्यातक कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद भारत ने रूसी तेल आयात में कमी की, जिससे वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच संवाद फिर से तेज हुआ।
राजनयिकों का कहना है कि यह रक्षा समझौता दोनों देशों के रिश्तों में विश्वास बहाली और दीर्घकालिक रणनीतिक सहयोग की दिशा में एक अहम पड़ाव है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी हाल ही में दक्षिण कोरिया यात्रा के दौरान कहा था कि वह भारत के साथ एक नया ट्रेड एग्रीमेंट करना चाहते हैं। यह बयान ऐसे समय आया जब व्यापार और ऊर्जा से जुड़े विवादों ने कुछ समय के लिए रिश्तों को प्रभावित किया था।
भारत ने रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिकी रुख पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि उसे “अनुचित रूप से निशाना” बनाया जा रहा है, जबकि अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी अपने हितों के मुताबिक मॉस्को से व्यापार जारी रखे हुए हैं।
विदेश मंत्रियों की मुलाकात ने बनाई राह
रक्षा मंत्रियों की इस ऐतिहासिक बैठक से पहले, भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भी कुआलालंपुर में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो से मुलाकात की थी। उस मुलाकात में द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने और व्यापार एवं ऊर्जा सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई थी।
राजनाथ सिंह ने कहा – ‘नए अध्याय की शुरुआत’
समझौते के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा,
“भारत और अमेरिका के बीच रक्षा ढांचे पर यह 10 वर्षीय समझौता दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग का प्रतीक है। मुझे विश्वास है कि आज से हमारे रिश्तों में एक नया अध्याय शुरू हुआ है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता भारत-अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी को केवल रणनीतिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि औद्योगिक और तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में भी नई दिशा देगा। आने वाले वर्षों में दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास, हथियार निर्माण, साइबर सुरक्षा और एआई-आधारित रक्षा तकनीक के क्षेत्र में मिलकर काम करेंगे।
निष्कर्ष:
भारत और अमेरिका के बीच हुआ यह 10 वर्षीय रक्षा समझौता न सिर्फ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा, बल्कि यह दोनों लोकतांत्रिक महाशक्तियों के बीच बढ़ते विश्वास और साझा वैश्विक दृष्टिकोण का भी प्रतीक है।
“यह सिर्फ एक समझौता नहीं, बल्कि आने वाले दशक की साझी रणनीतिक कहानी की शुरुआत है।”
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