सिद्धार्थनगर जनपद के पीसीएफ में हुए धान खरीद महा घोटाले ने अब और बड़ा रूप ले लिया है। करीब 67 करोड़ रुपये के इस घोटाले में कई गंभीर अनियमितताएँ सामने आने के बावजूद कार्रवाई के नाम पर जांच एजेंसियों पर पक्षपात और समझौते के आरोप लग रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, इस बड़े घोटाले में मिलरों और उनके परिजनों के खातों में करोड़ों रुपये की रकम जमा की गई, लेकिन आज तक किसी भी आरोपी पर कठोर कार्रवाई नहीं की गई। यही नहीं, जांच एजेंसियों पर आरोप है कि वे मिलरों से अवैध वसूली कर उन्हें बचाने का काम कर रही हैं।
पड़ोसी जनपद महाराजगंज का कनेक्शन
जांच में सामने आया कि महाराजगंज जिले के तीन प्रमुख मिलर और उनके रिश्तेदारों के खाते में लगभग 46 करोड़ रुपये का गलत भुगतान हुआ। हैरानी की बात यह है कि भुगतान केवल धान सुखाने और कुटाई तक सीमित नहीं रहा, बल्कि चावल के नाम पर भी करोड़ों का भुगतान कर दिया गया, जबकि विभाग के पास पहले से ही चावल की व्यवस्था थी।
इसके बावजूद, इन आरोपियों को जांच की आंच तक नहीं लगी और पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की जा रही है।
नामजद पर भी कार्रवाई नहीं
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिरकार इस घोटाले में बिजेंद्र सिंह, मृदालनी सिंह, मानवेंद्र सिंह और जयप्रकाश सिंह जैसे नामचीन लोगों को जांच के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है?
क्या उनके नाम के साथ जुड़े टाइटल या सामाजिक-राजनीतिक दबाव जांच में रुकावट बन रहे हैं?
जांच की निष्पक्षता पर सवाल
यह पूरा प्रकरण न केवल भ्रष्टाचार की परतें खोलता है बल्कि जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
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क्या वास्तव में 67 करोड़ का घोटाला दबा दिया जाएगा?
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क्या बड़े नाम और रसूखदार परिवार जांच से बाहर रहेंगे?
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क्या पीसीएफ घोटाले की जांच केवल कागजों तक ही सीमित रह जाएगी?
जनता अब निष्पक्ष जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रही है, ताकि धान खरीद के नाम पर हुए इस बड़े भ्रष्टाचार का सच सामने आ सके और जिम्मेदारों को सजा मिल सके।
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