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एसबीआई ने आरटीआई कानून के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से किया इनकार

चुनाव आयोग ने 14 मार्च को एसबीआई द्वारा जारी आंकड़ों को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया, जिसमें बॉन्ड भुनाने वाले राजनीतिक दलों और दानदाताओं का विवरण था। शीर्ष अदालत ने 15 मार्च को प्रत्येक चुनावी बॉन्ड के लिए अद्वितीय संख्या को रोककर पूरी जानकारी नहीं देने के लिए एसबीआई को फटकार लगाते हुए कहा था कि बैंक जानकारी का खुलासा करने के लिए “कर्तव्यबद्ध” था।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत चुनाव आयोग को दिए गए चुनावी बॉन्ड का ब्योरा देने से इनकार करते हुए दावा किया है कि यह व्यक्तिगत जानकारी है जिसे किसी जिम्मेदार हैसियत से रखा गया है। एसबीआई ने यह भी कहा कि इसके बावजूद चुनाव आयोग की वेबसाइट पर पब्लिक डोमेन मौजूद हैं।

चुनावी बॉन्ड योजना को “असंवैधानिक और स्पष्ट रूप से मनमाना” बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को एसबीआई को निर्देश दिया कि वह 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए बॉन्ड का पूरा विवरण चुनाव आयोग को प्रस्तुत करे, आयोग से कहा गया था कि वह 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर सूचना प्रकाशित करे।

11 मार्च को, अदालत ने समय सीमा के विस्तार की मांग करने वाली एसबीआई की याचिका को खारिज कर दिया और 12 मार्च को व्यावसायिक घंटों के अंत तक चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने का आदेश दिया।

आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर (सेवानिवृत्त) लोकेश बत्रा ने 13 मार्च को एसबीआई से संपर्क कर उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए गए इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा डिजिटल रूप में देने की मांग की थी।

बैंक ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दिए गए दो छूट प्रावधानों का हवाला देते हुए जानकारी से इनकार किया– इनमें धारा 8 (1) (ई) एक जिम्मेदार क्षमता में रखे गए रिकॉर्ड से संबंधित है और धारा 8 (1) (जे) व्यक्तिगत जानकारी को रोकने की अनुमति देती है।”

केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी तथा एसबीआई के उप महाप्रबंधक द्वारा बुधवार को दिए जवाब में कहा गया, आपके द्वारा मांगी गई सूचना में खरीदारों और राजनीतिक पार्टियों से जुड़ी जानकारी मांगी गई है और इसलिए इसका खुलासा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह जानकारी एक जिम्मेदारी के तहत सार्वजनिक नहीं की जा सकती।आरटीआई कानून की धारा 8(1)(ई) और (जे) के तहत ऐसी जानकारी देने से छूट प्राप्त है।

बत्रा ने एसबीआई द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को भुगतान की गई फीस का विवरण भी मांगा था। इसका भुगतान चुनावी बॉन्ड के रिकॉर्ड के खुलासे के खिलाफ मामले का बचाव करने के लिए एसबीआई की ओर से किया गया था।

बत्रा ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि एसबीआई ने वह सूचना देने से इनकार कर दिया जो पहले से ही चुनाव आयोग की वेबसाइट पर है। साल्वे को दी गई फीस के बारे में बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि बैंक ने ऐसी सूचना देने से इनकार किया है जिसमें करदाताओं का पैसा शामिल है।

चुनाव आयोग ने 14 मार्च को एसबीआई द्वारा जारी आंकड़ों को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया, जिसमें बॉन्ड भुनाने वाले राजनीतिक दलों और दानदाताओं का विवरण था। शीर्ष अदालत ने 15 मार्च को प्रत्येक चुनावी बॉन्ड के लिए अद्वितीय संख्या को रोककर पूरी जानकारी नहीं देने के लिए एसबीआई को फटकार लगाते हुए कहा था कि बैंक जानकारी का खुलासा करने के लिए “कर्तव्यबद्ध” था।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि उसने बॉन्ड के सभी विवरणों का खुलासा करने का निर्देश दिया है, जिसमें खरीदारों के नाम, राशि और खरीद की तारीख शामिल है। राजनीतिक चंदा देने के लिए बॉन्ड खरीदने वाली इकाइयों की पूरी सूची पेश करने के एक दिन बाद सीजेआई ने कहा कि सभी विवरण एसबीआई द्वारा प्रस्तुत किए जाने चाहिए, क्योंकि अदालत ने बैंक को अधूरी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए फटकार लगाई थी।

एसबीआई ने कहा था कि एक अप्रैल, 2019 से इस साल 15 फरवरी के बीच दानदाताओं ने अलग-अलग मूल्य के कुल 22,217 चुनावी बॉन्ड खरीदे, जिनमें से 22,030 को राजनीतिक दलों ने भुनाया।

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